बेबस सी लाचार सी दिखती
मुख से कभी भी कुछ न कहती
हर दम उसकी राह है तकती
आँखों में एक आस सी जगती
एक दिन ऐसा आएगा
बेटा मेरा पढ़ लिखकर
बाबू बनकर आयेगा
फिर होगा एक पक्का कमरा
बर्तन थाली चौका-चूला
उस दिन मनेगी खूब दीवाली
ढेरों कपड़े ढेर मिठाई
दिये जलाकर, थाल सजाकर
करेंगे लक्ष्मी, गणेश की पूजा
खीर मिठाई खील बताशे
अर्पित करके इष्टदेव को
हाथ जोड़कर विनती करके
औऱ सभी का आशीष भी लेगे
यही सोच कर मन में खोई
तभी अनेकों स्वरों ने उसकी
स्वपन तरंग को कुछ ऐसे तोड़ा
कोई उसको रोटी देता तो कोई देता पानी
मैं सपने में आज फिर खोई
कभी देखती उन लोगों को और कभी झल्लाती
मुझको कोई पागल कहता तो कोई हाय बेचारी
अपनों के ही ख़ातिर मैंने हालत ऐसे पाई है
फिर भी दिल में आस जगाये ,फिरती मारी-मारी
आज भी दिल में उम्मीद है बाक़ी ,फिरती मारी-मारी !
संघमित्रा(शिक्षिका)
केंद्रीय विद्यालय, एएमसी शाखा, लख़नऊ
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