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बरेली में ओपन औऱ ‘वैक्सीनेशन ऑन व्हील’ की शुरुआत

सफलता की कहानी -27

जहां एक ओर देश में वैक्सीन की कमी है वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बरेली जिले में ओपन वैक्सीनेशन की शुरुआत की गयी है। नवजवानों, ग्रामीणों और दिव्यांगो के लिये ‘वाक इन’ और ‘आन द व्हील’ वैक्सीनेशन अभियान जारी है।जिला प्रशासन की यह पहल लोगों को बहुत रास आ रही है। क्योंकि बहुत से लोग वैक्सीनेशन के लिये इंटरनेट के माध्यम से आनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें स्लाट नहीं मिल पा रहा था। इससे उनको दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन इस अभियान से लोग आसानी से टीकाकरण करवा पा रहे है। ओपन वैक्सीनेशन के तहत आज से बरेली क्लब, बरेली कॉलेज और संजय गाँधी कम्युनिटी हॉल में वैक्सीनेशन किया जा रहा है।
बरेली के सीएमओ डा. सुधीर गर्ग ने बातचीत में बताया कि कोरोना से बचाव के लिये 18 से 44 वर्ष और 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का वैक्सीनेशन मेडिकल टीम द्वारा किया जा रहा है। वैक्सीनेसन की संख्या बढ़ाने के लिये बरेली जिले में अब 52 जगहों पर वैक्सीनेशन कार्य चल रहा हैं। अब तक बरेली में 18-44 वर्ष तक के लगभग 73 हजार और कुल वैक्सीनेशन लगभग 2 लाख लोगों का किया जा चुका है है। वैक्सीनेशन सेंटर पर टीकाकरण कराने आये राकेश भारती ने कहा कि वो कई दिनों से इंटरनेट के माध्यम से अपना स्लाट बुक करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन बुक नहीं हो पा रहा था। सरकार की इस पहल से उनका टीकाकरण हो गया है और वो बहुत खुश है।

ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही कोरोना की रफ्तार को रोकने के लिये जिला प्रशासन ने काफी इंतजाम किये है। डीएम नितीश कुमार ने स्वास्थ्य विभाग को एक ही वैन में सैंपलिंग और वैक्सीनेशन की टीमों को भेजने का निर्देश दिया है। ताकि गांव के लोगों को वैक्सीनेशन और सैंपलिंग की सुविधा एक ही स्पॉट पर मिले। इसके लिए उन्हें रजिस्ट्रेशन भी नहीं करवाना होगा। डीएम नितीश कुमार ने बताया कि गांव में भ्रमण के दौरान सामने आया कि सैंपलिंग और वैक्सीनेशन को लेकर अलग-अलग टास्क मान रहे हैं, जबकि दोनों ही संक्रमण की दर को कम करने में सहायक है। इसके अतिरिक्त, 45 से अधिक उम्र के लोगों के लिए रजिस्ट्रेशन थोड़ा मुश्किल है। उन्हें स्लॉट बुकिंग में आने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए हमनें ‘वैक्सीनेशन ऑन व्हील’ योजना चलाई है। ताकि जिन्हें वैक्सीन लगवानी हो, उन्हें सुविधा उनके घर के पास ही मिले। उन्हें सीएचसी तक दौड़ न लगानी पड़े।

डा.श्रीकांत श्रीवास्तव/सुन्दरम चौरसिया

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