Pages

एक पिता

हजारों तूफानों को अपने अंदर समेटे हुए,

परन्तु धीर गंभीर छवि।

जी हां यही तो पहचान है,

एक पिता की।

सभी दुख परेशानी को खुद सहते हुए।

भूलें से भी न कोई आंच आये बच्चो पर,

 ये देखते हुए।

बिता देता है जो अपनी जिंदगी,

ख्वाहिश पूरी करने में परिवार की।

बदले में मिलता उसे सुनने को सिर्फ यही,

ये तो फर्ज होता है सभी का,

 क्या किया मेरे लिए आपने कुछ खास।

अंदर ही अंदर रोता मगर बहुत प्यार से कहता,

नादान हो तुम अभी,

एक दिन बनोगे पिता तुम भी।

तब होगा अहसास तुम्हे।

बिना कुछ कहे न करते हुए कोई  मलाल।

बस चेहरे पर ला कर एक छोटी सी मुस्कान।

जुट जाता हैं वो फिर से सबके लिए,

खुशियां तलाशने।

अपने वर्तमान की परवाह न कर,

जुट जाता है वो अपने,

बच्चो के भविष्य को तराशने। 

जी हाँ ये एक पिता ही होता है,

जो हर तपिश को सहते हुए,

बना रहता है एक वटवृक्ष।

ताकि बचा सके अपने बच्चों 

का बचपन।

खिला सके उनके चेहरे पर मुस्कान।

वैशाली गुलसिया

(सहायक अध्यापिका)

यूपीएस कुम्हरौरा

बंकी, बाराबंकी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ