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क्या 2050 तक डूब जाएंगे मुंबई, कोलकाता, चेन्नई

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। संयुक्त राष्ट्र ने साल 1972 में इसकी घोषणा की थी, लेकिन पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया और इस प्रकार दुनियाँ इस साल 48वां विश्व पर्यावरण दिवस मना रही है। हर बार अलग- अलग देश विश्व पर्यावरण दिवस की मेज़बानी करते हैं। इस वर्ष अर्थात् 2021 में इसकी मेज़बानी पाकिस्तान को दी गई है। संयुक्त राष्ट्र मेजबान देश पाकिस्तान के साथ मिलकर ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ के तहत लोगों के मन में पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति चेतना जागृत करने सम्बन्धी कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। हर वर्ष पर्यावरण दिवस की कोई न कोई थीम रखी जाती है इस बार "विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम पारिस्थितिकी तंत्र बहाली (Ecosystem Restoration) है "प्रकृति के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। हमारे लिए पेड़-पौधे, जंगल, नदियां, झीलें, जमीन, पहाड़ बहुत जरूरी हैं इसलिए पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण की बहाली का संकल्प लेना चाहिए। संपूर्ण मानवता का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। इसलिए एक स्वस्थ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना मानव समाज की कल्पना अधूरी है। प्रकृति को बचाने के लिए हम सब को मिलकर कुछ संकल्प लेना होगा। जिसमें वर्ष में कम से कम एक पौधा अवश्य लगाएं और उसे बचाएं तथा पेड़-पौधों के संरक्षण में सहयोग करें। आज के समय की प्रमुख पर्यावरणीय समस्याएं जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरण की घटती गुणवत्ता है

ई वेस्ट या ई-कचरा एक नया संकट

भारत पर्यावरण संरक्षण के मामले में बहुत पीछे है. सरकार की ओर से स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट शहर परियोजना पर जोर दिए जाने के बाद भी भारत ई-कचरा पैदा पैदा करने वाले शीर्ष पांच देशों में बना हुआ है. एसोचैम-नेक की ओर से हाल ही में कराए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है. ई-कचरे में आमतौर पर हटाए गए कंप्यूटर मॉनीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिंटिड सर्किट बोड (पीसीबी), मोबाइल फोन व चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन के साथ लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (एलसीडी)/प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर शामिल हैं. रिपोर्ट में सामने आया है कि 'असुरक्षित ई-कचरे की की रीसाइकिलिंग के दौरान उत्सर्जित रसायनों/प्रदूषकों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे व मस्तिष्क विकार, श्वसन संबंधी विकार, विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, दिल, यकृत को नुकसान पहुंचता है

कुछ अच्छी हरित कोशिशें ला सकतीं है बदलाव

  1. जहाँ भी हो सके जैसे भी हो ऊर्जा बचाएँ। यह बचत आपके फालतू के खर्च भी कम करेगी।

2.समान्य बल्ब और सीएफएल बल्बों के स्थान पर एल ई डी लेंपों का इस्तेमाल करें। 

3. किसान पोषक तत्वों से भरपूर सूखा प्रतिरोधी कम पानी मैं उगने वाले मोटे अनाज खेतों मैं उगाएँ

4. वाशिंग मशीन तभी चलाएँ जब उचित मात्रा में कपड़े हों। कपड़े सुखाने हेतु ड्रायर का प्रयोग रोककर बिज़ली बचाएँ

5. स्टार लेवल वाले उपकरण प्रयोग करें ये15 प्रतिशत तक बिजली बचाते हैं।

6. गाड़ी के टायरों में हवा सही रखकर 3 प्रतिशत ईंधन बचा सकते हैं।

7. अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ। एक अकेला वृक्ष अपनी जिन्दगी में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है।

8. स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से ऊर्जा की खपत आधी की जा सकती है।

9. खाना बर्बाद न करें। इसे तैयार करने में बहुत ऊर्जा लगती है। फ्रोजन फूड की जगह ताजा खाना खाएँ।

10. डिब्बाबन्द चीजों से बचें। आपकी किफायत दुनिया को बचा सकती है।

11. अगर हो सके तो प्राकृतिक (अक्षय) ऊर्जा प्रयोग में लाएँ।

12-नहाते समय बाथरूम मैं फव्वारा के स्थान पर बाल्टी मग से नहाकर पानी बचाएं

13- घर मैं खिड़की हों तथा बच्चे अपनी पढ़ाई की टेबल कुर्सी खिड़की तरफ लगाकर प्राकृतिक लाइट का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर बिजली बचा सकते हैं

ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन के रूप में पारिस्थितिक तंत्र पर मँडराता खतरा

मानव जनित ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अंततः भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि करती हैं। शोध के मुताबिक कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन पिछले १०-१५ सालों में ४० गुणा बढ़ गया है वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ गई है। एक गर्म जलवायु में, वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और बारिश कर सकता है, जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो रहा है। वैश्विक तापमान मैं बढ़ोत्तरी से ग्लेशिएर पिघल रहे है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है ग्लेशियर पिघलने की स्थिति में दुनिया में कुल 293 शहरों पर खतरा जताया गया है. इनमें भारत के तीन शहरों का नाम भी है, कर्नाटक का मंगलोर, महाराष्ट्र का महाराष्ट्र का मुंबई और आंध्र प्रदेश का काकिंदा एक अध्ययन से पता चला है कि कुछ सालों में ही एक अरब से ज्यादा लोगों को जलवायु की समस्याओं के चलते विस्थापित होना पड़ सकता है.हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमी एंड पीस की रिपोर्ट में यह अनुमान बताया गया है. यह संस्था हर साल वैश्विक आतंकवाद और शांति के इंडेक्सेस जारी करता है. इस संस्था ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य स्रोतों के आंकड़ों का उपयोग कर 157 देशों में आठ पारिस्थितिकीय खतरों से सामना होने के नतीजों की गणना की. इसके बाद उन्होंने उस देश की इन खतरों से निपटने की क्षमता का भी आंकलन किया.इस अध्ययन में, द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और तेजी से बढ़ती जनसंख्या जैसे कारकों की वजह से 31 देशों के 1.2 अरब से अधिक लोगो के समाने अपनी जगह से विस्थापित होने के जोखिम का खतरा आ जाएगा क्योंकि यह पारिस्तिथिकी खतरों का पर्याप्त प्रतिरोध नहीं कर सकेंगे. इनमें से शीर्ष 19 देशों में खाद्य और पानी की कमी होगी जो कि दुनिया के 40 सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में शामिल होंगे.इस अध्ययन में कहा गया है कि साल 250 तक कुल 141 देश ऐसे होंगे जो कम से कम एक पारिस्थिकी खतरे का सामना कर रहे होंगे. इनमें से सबसे ज्यादा खतरा अफ्रीका के उप साहरा, दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों में होगा. वहीं पानी की कमी के मामले में भारत चीन के साथ शीर्ष पर है।


सुशील द्विवेदी

(पर्यावरणविद् और अर्थ डे नेटवर्क स्टार अवार्ड 2020 विजेता)

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