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बाल श्रमिक व्यथा

अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रमिक निषेध दिवस पर विशेष

कुछ सपने हमने भी देखने चाहे,

पर मजबूरियों ने रोक दिए।

हम बाल श्रमिक भी,

पुस्तक पकड़ना चाहे,

पर जिम्मेदारियों ने हाथ पकड़ लिया।

हमने एक रोटी की चाहत में,

अब बचपन अपना भुला दिया,

घर में बिलखती छोटी बहन का,

भूख मिटाने के लिए,

खुद को बच्चे से बड़ा बना लिया,

निकला छोटे छोटे हाथों से,

मेहनत की रोटी लाने को।

कुछ ने बालक समझकर,

दिन भर खटाया,

फिर एक रोटी थमाके लौटा दिया।

दुखी हूं मैं अपने जीवन से,

सोचता हूं क्यों?

मुझे बाल श्रमिक बनना पड़ा।

    डॉ. माधवी मिश्रा (माधव)

    सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश

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