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श्रद्धांजलि

यूं तो रोज ही छलक जाती है

चार बूंदें इन आंखों से मेरी

जब याद आती है 

वो सौम्य सी सूरत आपकी

घुट जाता है मन अंदर से

पर छिप जाते हैं ये आंसू जाने कहीं

उभर आती है मन में 

यादों की एक किताब कहीं

बचपन से जवानी के सफर की 

हर बात....

हो जाती है नाकाम हर कोशिश

खुद को समझाने की

कर नहीं पाती हूं विश्वास

कि आज आप ही नहीं हमारे बीच

अपने बच्चों के पास

न जाने क्यों सताती है

हर पल एक बात

क्यों चले गए आप

अचानक हमसे दूर

क्यों न पहचान पायी

वो पथराई आंखों का दर्द

क्यों न सुन सकी

वो खामोश निगाहों की आवाज

जो कह रहीं थीं 

अलविदा मेरी बच्ची

क्यों न समझ सकी 

वो नीरव सा कलरव

जो कर रहा था

अंधेरे में करुण कृंदन

कितनी अभागी सी लगती हूं आज भी

कि अंतिम समय में 

यह न सकी साथ आपके,,,

चली गईं हैं साथ आपके जैसे

हमारी खुशी

हमारा उत्साह 

हमारा विश्वास

हमारे चेहरे की वो रौनक जो थी आपके साथ

यूं तो आज भी आप 

साथ हैं हमारे

पर साथ वो तस्वीरों में सिमट गया

गूंजती है प्रतिध्वनि कानों में आपकी

होता है महसूस वो साया आपका

जो अब कहता है 

कि जीना होगा तुम्हें

अब मेरे बगैर

पर,,,,

अब भी यकीं नहीं होता

कि सच में

अब जीना होगा आपके बगैर,,,,

      निधि श्रीवास्तव

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