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आज़ादी के आंदोलन में वर्धा घोषणा-पत्र एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज – कुलपति

वर्धा। आज़ादी का अमृत महोत्‍सव भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र की ओर से वर्धा घोषणा-पत्र पर 14 जुलाई 2021 को आयोजित तरंगाधारित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि आज़ादी के आंदोलन का शंखनाद करने की दृष्टि से महात्‍मा गांधी द्वारा तैयार किया गया वर्धा घोषणा-पत्र एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज है। महात्‍मा गांधी ने 9 जुलाई 1942 को वर्धा घोषणा-पत्र का प्रारूप तैयार किया था जिसे 14 जुलाई 1942 को वर्धा में आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में प्रस्‍तुत किया गया।

प्रो. शुक्‍ल ने वर्धा घोषणा-पत्र के संदर्भ में आज़ादी से जुड़े अनछुये पहलुओं को अपने व्‍याख्‍यान में विस्‍तार से बताया। उन्‍होंने कहा कि 1942 का आंदोलन गांधी केंद्रित था। गांधी जी ने 9 जुलाई को वर्धा घोषणा-पत्र का मसौदा पं. जवाहरलाल नेहरू को भेजा था। वर्धा प्रस्‍ताव ने आज़ादी का मुक्‍कमल रास्‍ता प्रदर्शित किया था। उन्‍होंने कहा कि गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस महान राष्‍ट्रभक्‍त थे और आज़ादी को लेकर दोनों के मन में कोई संशय नहीं था। जहां 1857 का आंदोलन बहुत लंबा चला वहीं 1942 का आंदोलन मात्र दो-ढाई महीने में समाप्‍त हुआ। यह आंदोलन दो ध्रुव का आंदोलन था। उनका कहना था कि ब्रितानी हुकुमत से भारत को आज़ाद करने के लिए आंदोलन के शिवाय कोई रास्‍ता नहीं है इसपर गांधी जी और नेताजी एकमत थे। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि 1942 का आंदोलन हिंसा और अहिंसा के विवाद से परे केवल संपूर्ण आज़ादी का आंदोलन था। उन्‍होंने आज़ादी के आंदोलन के परिप्रेक्ष्‍य में गांधी जी द्वारा लिखे गए महत्‍वपूर्ण पत्र और गांधी-नेताजी में हुए संवाद को व्‍याख्‍यायित किया।

संगोष्‍ठी में मुख्‍य वक्‍ता के रूप में बोलते हुए सुविख्‍यात इतिहासविद तथा इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के मानविकी एवं कला संकाय के अध्‍यक्ष प्रो. हेरंब चतुर्वेदी ने 1857 से लेकर 1942 तक के दौरान की ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डाला। उन्‍होंने कहा कि भारत को आज़ादी दिलाने के लिए 14 जुलाई 1942 का विशेष महत्‍व है। गांधी जी ने तत्‍काल स्‍वतंत्रता की मांग करते हुए करेंगे या मरेंगे का मंत्र दिया था। उन्‍होंने कहा कि आज़ादी की दृष्टि से 1857 और 1942 इन दो क्रांतियों का बड़ा महत्‍व है। उन्‍होंने गांधी के असहयोग आंदोलन तथा चौरी-चौरा की घटना के साथ-साथ पं. जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती आदि के योगदान को रेखांकित किया।

कार्यक्रम की प्रस्‍तावना महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने रखी। उन्‍होंने कहा कि वर्धा घोषणा-पत्र से भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्‍ठभूमि तैयार हुई। कार्यक्रम में स्‍वागत वक्‍तव्‍य केंद्र के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. के. बालराजु ने दिया। कार्यक्रम का संचालन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने किया तथा धन्‍यवाद सहायक प्रोफेसर डॉ. शिव सिंह बघेल ने ज्ञापित किया। संगोष्‍ठी का प्रारंभ गांधी जी के प्रिय भजन ‘वैष्‍णव जन से’ और समापन राष्‍ट्रगीत के साथ हुआ। संगोष्‍ठी में प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट सहित अधिष्‍ठाता, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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