तू हिसाब का बड़ा पक्का है
मेरा गुजरा हुआ वक़्त मुझे लौटा दे
जब तू स्तब्ध हो कर निशब्द तू हो रहा था
मैं शब्द बन कर आई तेरे साथ में खड़ी थी
तू विश्वास मेरा मुझे लौटा दे
तू मेरा गुजरा हुआ वक़्त मुझे लौटा दे
जब वीरान सड़कों की धुंध में तू कही खो रहा था
मैं रहनुमा बनकर तेरे साथ में खड़ी थी
तू साथ मेरा मुझ को लौटा दे
मेरा गुज़रा हुआ वक़्त मुझे को लौटा दे
जब तू तारों की आग़ोश में सपने बुन रहा था
मैं खुदा से तेरे हिफाज़त की दुआएं में खड़ी थी
मेरी हर उस इबादात को मुझे को लौटा दे
मेरा गुज़रा हुआ वक़्त मुझ को लौटा दें
जब तू उलझनों से घिरा था तू तन्हा जब खड़ा था
मैं आसरा बन तेरे साथ में खड़ी थी
तू आस मेरी मुझ को लौटा दे
मेरा गुजरा हुआ वक़्त मुझे को लौटा दे
तू हिसाब का बड़ा पक्का है
तो मेरा गुजरा हुआ वक़्त मुझे लौटा दे
संघमित्रा
(वरिष्ठ समाजसेविका)
शिक्षिका, केंद्रीय विद्यालय एएमसी, लखनऊ
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