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प्रेमचंद की रचनाओं के केंद्र में स्वराज, स्वदेशी, स्वशासन : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

वर्धा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज की ओर से प्रेमचंद की 141वीं जयंती के अवसर पर शनिवार को 'प्रेमचंद और स्वतंत्रता आंदोलन' विषय पर तरंगाधारित राष्ट्रीय परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद अपने वैचारिक लेखन में स्वराज, स्वदेशी, स्वशासन, स्वाधीनता की बात करते हैं. प्रो. शुक्ल ने प्रेमचंद की कहानियाँ मंदिर, शुद्धि, सीता, जुलूस, समर यात्रा, शराब की दुकान, सुहाग की साड़ी, आहुति, जेल आदि की चर्चा की. उन्होंने कहा कि राष्ट्र और समाज की स्वतंत्रता के सिपाही के रूप में अभी प्रेमचंद को विस्तार से देखा जाना जरूरी है. प्रेमचंद का नवजागरण भारतीय दृष्टि से ओतप्रोत है. कलम बंद नहीं होगी, नाम बदल होगी प्रेमचंद का यह संकल्प राजनैतिक और मानसिक पराधीनता से मुक्ति की लड़ाई का प्रतीक है. हिंदी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा के रूप में उभरी थी, इसलिए प्रेमचंद हिंदी को अपने लेखन की भाषा बनाते हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर एवं हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय नई दिल्ली की निदेशक कुमुद शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य के माध्यम से जागरण का प्रयास किया. देशभक्ति के प्रभाव में उन्होंने अपने नाम को बदल कर प्रेमचंद रखा. प्रेमचंद विषमता मुक्त सामाजिक व्यवस्था चाहते थे. जुलूस, शतरंज के खिलाड़ी आदि कहानियों और हंस, माधुरी आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के माध्यम से प्रो. कुमुद शर्मा ने राष्ट्रीय चेतना के संवाहक के रूप में प्रेमचंद की साहित्यकार और पत्रकार की दृष्टि को प्रस्तुत किया. 

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रो. चमन लाल गुप्त ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने जीवन में चारों ओर घटनाओं को घटित होते देखा, अनुभव किया, संवेदना के स्तर पर स्वीकार किया और फिर उसकी प्रतिक्रिया अपने साहित्य और जीवन में दी. प्रेमचंद के साहित्य में स्वाधीनता आंदोलन का विस्तार अपने विविध रूपों में मिलता है. प्रेमचंद ने सामाजिक समस्याओं को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से शामिल किया. 

साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार शुक्ल ने प्रेमचंद की जीवन दृष्टि पर बात करते हुए उसे आदर्शवादी, यथार्थवादी, भौतिकवादी और आध्यात्मवादी करार दिया. साहित्य विद्यापीठ के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेमचंद की रचनाओं की चर्चा की. प्रो सिंह ने हंस पत्रिका और रंगभूमि उपन्यास की चर्चा कर प्रेमचंद के भीतर उपस्थित आजादी के मनोभावों को स्पष्ट किया. 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भाषा विभाग के प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि प्रेमचंद खुदीराम बोस की तस्वीर अपने कमरे में लगा कर ही लेखन करते थे. साहित्य राजनीति के आगे आगे चलने वाली मशाल है. इसी मशाल को प्रेमचंद ने उठाया. प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता और सृजनात्मक लेखन के माध्यम से आज़ादी की लड़ाई लड़ी. 

प्रति-कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद ने किसान जीवन को केंद्र में रखा. गोदान का किसान औपनिवेशिक किसान है.  वह किसान औपनिवेशिक शासन से उपजी स्थितियों का शिकार है.  किसान के उद्धार के लिए, उसके दर्द और पीड़ा को सामने लाने के लिए लेखन का मुख्य बिंदु बनाया. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय किसानों की शोषण से मुक्ति को प्रमुखता से रखा.

 कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया. स्वागत एवं वक्ताओं का परिचय स्त्री अध्ययन की सह आचार्य  डॉ. अवन्तिका शुक्ल ने दिया.क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश दुबे ने प्रेमचंद के जीवन और साहित्य में स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जुड़ाव और गांधी के प्रभाव को रेखांकित करते हुए परिसंवाद की प्रस्तावना रखी. 

स्त्री अध्ययन विभाग की सह आचार्य डॉ. आशा मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापित किया. इस कार्यक्रम में प्रो. कृपा शंकर चौबे, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. अशोकनाथ त्रिपाठी, डॉ. सुप्रिया पाठक, डॉ. अमरेन्द्र शर्मा, डॉ. जयंत उपाध्याय, डॉ. विधु खरे दास, डॉ. हरप्रीत कौर, डॉ. सुरभि विप्लव, डॉ. ऋचा द्विवेदी, डॉ. जोगदंड शिवाजी, डॉ अनूप कुमार त्रिपाठी आदि अध्यापक एवं सहायक कुलसचिव विनोद वैद्य, जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे, डॉ. अंजनी राय, शम्भू दत्त सती, राजदीप राठौड़, जयेंद्र जायसवाल ,अरविंद राय, मिथिलेश राय उपस्थित थे.  विश्वविद्यालय के आधिकारिक फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर ढेरों दर्शकों ने जुड़कर कार्यक्रम का लाभ उठाया।

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