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‘दर्द तुम घर मेरे आना मैं तुम्हें उपहार दूंगी’

काव्यकृति ‘जिंदगी मूक सबकी कहानी रही का विमोचन

 - लेखिका डॉ. करुणा पांडेय के आवास पर हुआ कार्यक्रम

- पूर्व राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने किया लोकार्पण

 

लखनऊ। मानवीय भावनाओं को काव्यमय शब्दों में साहित्यप्रेमियों के सामने रखने वाली डॉ. करुणा पांडेय की काव्यकृति “जिंदगी मूक सबकी कहानी रही का लोकार्पण लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी की मौजूदगी में डॉ करुणा पांडेय के आवास पर हुआ। काव्य संग्रह का लोकार्पण करते हुए केसरीनाथ त्रिपाठी ने कहा कि करुणा जी ने काव्य संग्रह में हमारे अध्यात्मिक और पौराणिक पात्रों का उचित स्थान और संदर्भ में प्रयोग किया है। पाठकों के हृदय की भावनाओं को सुंदर साहित्यिक रुप में पेश करने की कोशिश की है। मनुष्य बहुत संवेदनशील है। छोटी बातें उसके दिल को दिल को छू जातीं हैं,  और कभी बड़ी बातें ऊपर से निकल जातीं हैं। संवेदनशीलता ही कवि को कवि बनातीं हैं।करुणा पाण्डेय ने अपनी रचनाओं का पाठ भी किया।

काव्यकृति की सराहना करते हुए प्रदेश के पूर्व मुख्यसचिव शम्भुनाथ ने कहा कि डॉ. करुणा पांडे की कृति में गीत, ग़जल, मुक्तक आदि अनेक विधाओं से सजा एक सम्मोहक पुष्प गुच्छ जैसा है। संग्रह की कविताओं में हर्ष-विषाद, सांसारिकता-आध्यात्मिकता, संयोग-वियोग, आदि विविध भावों का इन्द्रधनुषी विस्तार सामने आया है। कथ्य की सघनता, शिल्प की श्रेष्ठता की नजर से यह कृति स्वागत और समादर योग्य है। प्रसिद्ध कवि डॉ. शिव ओम अम्बर ने कहा कि कवियत्री की इस कृति में उपजे भाव संभावनाओं के प्रति आशा जगाते हैं। वह उन संवेदनशील रचनाकारों में से हैं, जो वेदना का तिरस्कार नहीं करते वरन स्वागत को तत्पर रहते हैं। काव्य संग्रह की रचना ‘दर्द तुम घर मेरे आना मैं तुम्हें उपहार दूंगी, अश्रुकण से हैं पिरोये मोतियों के हार दूंगी…’ बड़ा उदाहरण है। करुणा जी के मुक्तक जीवन के अनुभव से निकले हैं। इनमें ऐसी अभिव्यंजना हैं, जो सीपियों से झांकते मोतियों के सरीखा सौंदर्य को दर्शाते हैं। जैसे काव्य संग्रह की यह पंक्तियां बानगी हैं ‘किसी की बांसुरी में स्वर किसी का दर्द होता है, जो किस्सा खुद पे गुजरे बड़ा बेदर्द होता है…’

हिन्दी सलाहकार समिति की पूर्व सदस्य डॉ.फरीदा सुल्ताना ने कहा कि करुणा जी की कृति का एक-एक शब्द दर्द, आध्यात्मिकता, देश प्रेम, मानवीय संबंधों और मानव जीवन के तत्व को सामने लाने के साथ ही यथार्थ का बोध दर्शाता है। उन्होंने मानवीय आचार-विचार, व्यवहार में समय के हिसाब से होने वाले बदलाव को बड़े ही सलोने  यथार्थपरक अंदाज में व्यक्त किया है। पुस्तक पर चर्चा करते हुए डॉ.शैलेंद्र शर्मा ने कृति के विविध पक्षों का आकलन करते हुए आलोचक व विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो.शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि डॉ करुणा की कविताओं में जीवन के विविध अनुभवों, दर्द, पीड़ा और प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति हैं। बढ़ती संवेदना शून्यता के बीच कलमकार के सामने मौजूद चुनौतियों को वे मूर्त करती हैं। समाज और परिवार के टूटते ताने-बाने की त्रासद स्थितियों को उन्होंने अपनी रचनाओं से जीवंत कर दिया है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ. विद्या विंदु सिंह, ओस्लो नार्वे की पत्रिका स्पाइल दर्पण के संपादक डॉ सुरेश शुक्ल शरद ‘आलोक सहित अन्य रचनाप्रेमियों ने अपने विचार रखे। संचालन भारती सिंह ने किया। कार्यक्रम डॉ सुरेश शुक्ल के संयोजन में हुआ।

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