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राम को पाना है तो खुद को बदलना होगा - साध्वी ऋतम्भरा

 भारत के ध्वस्त मन्दिरों की पुनर्प्रतिष्ठा का संकल्प लें हिन्दू

सागर की छाती पर रामसेतु है प्रेम की पराकाष्ठा : साध्वी ऋतम्भरा

लखनऊ। "राम को पाना है तो बंदे खुद को बदलना होगा, धर्म युद्ध में तुझको अंगारों पर चलना होगा..." लक्ष्मण नगरी में चल रही श्रीराम कथा के अन्तिम दिन शुक्रवार को साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि संसार में राम जी जैसा प्रेमी नहीं है। जानकी के लिए सागर की छाती पर श्रीरामसेतु प्रत्यक्ष प्रमाण है जो प्रेम की पराकाष्ठा है। लंका दहन के पश्चात हनुमान जी मैया जानकी को वापस ले जा सकते हैं किन्तु वे कहती हैं कि मैं बलपूर्वक लायी गयी थी और सम्मान सहित तब जाऊंगी जब प्रभु राम मुझे लेने आयेंगे। यही आर्य नारी का स्वाभिमान और शील है।

सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में भारतीय लोक शिक्षा परिषद के लखनऊ चैप्टर द्वारा आयोजित श्रीरामकथा के सातवें दिन साध्वी ने शबरी प्रसंग, राम-सुग्रीव मित्रता, सेतु बंधन, लंका दहन समेत राज्याभिषेक की कथा सुनायी। मुख्य यजमान विधायक डा. नीरज बोरा ने सपत्नीक व्यास पूजा की। महापौर संयुक्ता भाटिया, वत्सल, कनुप्रिया व सन्देश जाजू के साथ ही अनेक जनप्रतिनिधियों व श्रद्धालु भक्तों ने साध्वी का आशीर्वाद लिया। भारत लोक शिक्षा परिषद के पदाधिकारियों ने उन्हें श्रीराम मन्दिर का प्रतीक भेंट किया। साध्वी ने कथा समापन के पूर्व श्रद्धालुओं को दीक्षा भी दी।

सुरसा द्वारा हनुमान की परीक्षा का वर्णन करते हुए साध्वी ने कहा कि सबसे ज्यादा कठिन है भरोसा जीतना। यह काम तभी हो सकता है जब तुम छोटे बन जाओ। लघु रूप में आकर हनुमान ने सुरसा को प्रणाम किया। उन्होंने कहा कि हम सबके भीतर भी यह आसुरी वृत्तियां हैं। परछाई पकड़ कर गगनचरों का भक्षण करने वाली सिंहिनी ईर्ष्या के रूप में पेट के पाताल में रहती है। भेद बुद्धि के रुप में लंकिनी रहती है। जो इससे मुक्त हो जाता है वह अशोक वाटिका में शान्ति रूप मां जानकी का दर्शन करता है। जीवन में यदि शान्ति नही ंतो जीवन बेल मुरझा जाती है। आनन्द का अमृत कुण्ड अपने भीतर ही खोजो क्योंकि वो बाहर नहीं मिलेगा।  

साध्वी ऋतम्भरा ने अपने चिर परिचित अन्दाज में हिन्दूओं के शौर्य और पुरुषार्थ को ललकारा। कहा कि जिन मोहिं मारा ते मैं मारे के सिद्धान्त को अपनायें। अपने पुरुषार्थ और रघुवीर पर भरोसा रखें। जिनके तार विदेशों से जुड़े हैं, सीमापार पड़ोसी से प्रेम की पींगें बढ़ा रहे हैं वे देश से द्रोह कर रहे हैं। भारत की ओर कुदृष्टि डालने वाली आंखें नोंच ली जायेंगी। उन्होंने कहा कि लक्ष्य पाना है तो शक्ति पहचानो क्योंकि अभी हमें भारत के समस्त ध्वस्त मन्दिरों की पुनर्प्रतिष्ठा करनी है।

गर्भ में ही दो रामत्व की दीक्षा

साध्वी ने भारतीय नारियों का आह्वान करते हुए कहा कि सन्तानों के हृदय में राम बैठा दो। उन्हें गर्भ में ही राम राम की दीक्षा दे दो। उन्होंने कहा कि तुम्हारे पैरों में जो पायल है वह बेड़ी नहीं कर्त्तव्यों की रुनझुन है। विकास के प्रवाह में सूर्पणखा जैसी आसुरी वृत्तियों की शिकार न बनो। अपने पति से कंचन मृग न मांगो। यदि लक्ष्मण रेखा पार की तो षडयन्त्रों की सुरसा चबा जायेगी।

सामर्थ्य नहीं होने पर भी लड़े जटायु

साध्वी ने कहा कि सामर्थ्यवान होकर भी द्रोपदी की रक्षा न करने वाले भीष्म को शरशैया मिली जबकि सामर्थ्य न होते हुए भी अपनी चोंच को हथियार बनाकर जटायु ने आर्यावर्त की नारी के सम्मान के लिए संघर्ष किया तो उसे प्रभु की पावन गोद मिली।

भाव प्रबल हों तो अश्रु देते हैं साथ

शबरी और राम के मिलन को अवर्णनीय बताते हुए साध्वी ने कहा कि मिलन सुखदायक होता है किन्तु भगवान और भक्त का मिलन परम सुख देता है। भाव जब प्रबल हो जाते हैं तो शब्द साथ छोड़ देते हैं और तब अश्रु ही काम आता है। प्रभु तो भाव के भूखे हैं वे विदुरानी द्वारा दिये केले के छिलकों से तृप्त होते हैं। भीलनी के बेर से तृप्त होते हैं। प्रेम, श्रद्धा, नेह और स्नेह का भोग ही प्रभु को स्वीकार है। प्रार्थना और प्रतीक्षा भक्ति के आधार हैं और वे शबरी में कूट कूट कर भरे हैं।

आज भी चल रहा है युद्ध

साध्वी ने कहा कि आर्य संस्कृति की मर्यादाओं का उलंघन हो रहा है। जिस युद्ध का प्रारम्भ राम ने किया था वह अब भी जारी है। जो हम देखते हैं उसकी लालसा पैदा होती है। श्रव्य व दृश्य माध्यमों से हमारी संस्कृति पर हमला कर आंगन में सेंध लगायी गयी है। एक नारी के अनेक से सम्बंध दिखाये जा रहे हैं। संत कृष्णदास आगरा में वेश्याओं के एक मुहल्ले से गुजर रहे थे। संगीत की मधुर ध्वनि सुन कोठे पर गये। वेश्या को प्रणाम कर कहा कि इतना सुन्दर गाती हो तो कभी आओ न वृन्दावन में मेरे ठाकुर को रिझाने। उस वेश्या ने ठाकुर जी के दर्शन कर अपने प्राण त्यागे। भारत की वेश्यायें भी धन्य रही हैं। उन्होंने कहा कि इन्द्रियों का आकर्षण स्थायी नहीं होता।

मुख्य यजमान डा. नीरज बोरा ने सात दिन तक संगीतमय प्रवचन में गायक व संगत कलाकारों सर्वश्री किशन शान्त मास्टर जी, विजया, सम्विता, दीपक शिवम, आकाश, अर्जुन तथा वात्सल्य ग्राम की दीदी सत्यप्रिया समेत कथा व्यवस्था से जुड़े सभी कार्यकर्त्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया। कथा में बिंदु बोरा, गिरिजाशंकर अग्रवाल, आशीष अग्रवाल, भूपेन्द्र कुमार अग्रवाल ‘भीम’, पंकज बोरा, भारत भूषण गुप्ता, मनोज अग्रवाल, डा. एस.के. गोपाल, अनुराग साहू, पार्षद प्रदीप शुक्ला, रुपाली गुप्ता, राघवराम तिवारी, दीपक मिश्रा सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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