Pages

एक दूसरे के पर्याय हैं भारत और राम : साध्वी ऋतम्भरा

चिरंजीवी है सनातन संस्कृति : साध्वी ऋतम्भरा

हमारे यहां जन्म जन्मान्तर तक साथ रहने की निष्ठा है 

शिव-पार्वती विवाह का दिव्य अनुष्ठान : राम कथा के दूसरे दिन गूंजा मंगल गान

लखनऊ। कुछ पापी नेताओं को राम के होने का प्रमाण चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि भारत और राम एक दूसरे के पर्याय हैं जिसे समझने के लिए हृदय चाहिए। सनातन संस्कृति चिरंजीवी है। यहां जन्म जन्मान्तर तक साथ रहने की निष्ठा और समर्पण है। सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में भारत लोक शिक्षा परिषद के तत्वावधान में चल रही राम कथा में रविवार को दूसरे दिन साध्वी ऋतम्भरा ने भगवान शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग, सती द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम की परीक्षा, अपने पिता दक्ष के घर बिना निमन्त्रण जाने और यज्ञाग्नि में भस्म होने की कथा सुनाई। 

मुख्य यजमान लखनऊ उत्तर विधानसभा क्षेत्र के विधायक डा. नीरज बोरा समेत श्रद्धालुओं ने आरती पूजन किया। इस दौरान शिव बारात और शिव-पार्वती विवाह की सुंदर झांकी का भी प्रस्तुत की गई। साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि जब सन्तों का मिलन होता है तो रामकथा की भावधारा बहती है। याज्ञवल्क्य विवेकी हैं और भारद्वाज अनुरागी। दोनों का मिलन सुखदायक है। जिनके मन में राम होते हैं वह गुणों की खान बन जाता है। नदी गहरी होती है तो मौन हो जाती है। विनम्र व्यक्ति गहरे होते हैं। कुछ पाना है तो विनम्र बनना होगा। अज्ञानियों की तरह प्रश्न पूछने होंगे। हम सर्वज्ञ नहीं हो गये जो इतराने लगे। हमारे यहां कौवे के रूप में यदि कागभुशुंडी कथा कहते हैं, तो पक्षीराज गरुण भी नीचे बैठकर कथा श्रवण करते हैं। उन्होंने कहा कि राम रस हैं और कथा रसमयी होती है, जिसका पान कानों से किया जाता है। मन चपल है जिसको वश में नहीं किया जाता तो वह भटकता रहेगा। चित्त को स्थिर करने और इन्द्रियों पर नियंत्रण की आवश्यकता है। 

उन्होंने पतन से बचने के लिए बड़ों का अनुगमन करने तथा प्रार्थना व प्रतीक्षा को जीवन का सूत्र बनाने की बात बतायी। यह भी कहा कि रिश्तों में कपट नहीं होना चाहिए। साध्वी ने कहा कि मन के घोड़े की लगाम को साधना ही तप है। कर्म को ठाकुर के चरण में अर्पण करना चाहिए। क्योंकि आप उपकरण हैं आप कर नहीं रहे अपितु आपसे करवाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक भ्रान्ति रहती है तब तक दुःख रहता है।

कथा नहीं जीवन का सूत्र है रामचरितमानस

मानस को भक्ति और प्रेम का दर्शन बताते हुए उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने लोकभाषा में सृजन कर समस्त वेदग्रन्थों का सार दे दिया है। ये कथा नहीं जीवन के सूत्र हैं। जिन्दगी में आई विपरीत परिस्थितियां भी हमें तरासती और निखारती हैं। जिसने पीड़ा झेली वही सृजन कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां धर्मपत्नी होती है किन्तु असली बोधपरक दैविक बुद्धि ही असली पत्नी है। जब यह जाग जाती है तो हुलसी का बेटा तुलसीदास हो जाता है। 

राममन्दिर आन्दोलन के दौरान खेतों में बितायी रातें

राममन्दिर आन्दोलन के दौरान चण्डी बनकर दहाड़ने वाली साध्वी ऋतम्भरा ने अपने उन दिनों की यादें साझा करते हुए कहा कि लोग अपने घरों पर हमें इस डर से नहीं ठहराते थे कि बाद में पुलिस परेशान करेगी। मैंने अनेक रातें खेतों और रेलवे स्टेशनों पर बितायी है। हम लोगों ने केवल रामजन्मभूमि पर रामलला का भव्य मन्दिर बनाने का सपना देखा था। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने देश का विभाजन झेला है किन्तु अब मातृभूमि के स्वाभिमान के साथ छल होते नहीं देख सकते। जो भारत को घर समझेंगे उनसे कुछ नहीं कहना किन्तु इसे बांटने वालों को छोड़ा नहीं जायेगा।

नहीं पढ़ाया सही इतिहास

साध्वी ने कहा कि सत्ता और राजनीति के लिए हमारे नौनिहालों को सही इतिहास नहीं पढ़ाया गया। विजय नगर के तीन सौ वर्ष के गौरवशाली इतिहास समेत अनेक पन्ने गायब हैं। उस मुगलिया सल्तनत का गुणगान है जिस दिल्ली को अलग अलग ओर से शिवाजी, राठौर प्रताप, छत्रसाल और गुरु गोविन्द सिंह जैसों ने नकेल चढ़ा रखी थी। साध्वी ने स्वयं को सौहार्द्र का पक्षधर बताते हुए लोगों से धर्म रक्षा की अपील की।

बेटियों के रुदन ने बनवाया वात्सल्य ग्राम

बेटियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण और निष्ठुरता पर साध्वी भावुक हो उठीं। कहा कि राममन्दिर आन्दोलन के दौरान गोवा में प्रायः अनाथालयों में प्रवास करती थी जहां एक नवजात अनाथ को रात भर सीने से चिपकायी रही। वापसी में मैंने अपने गुरु से बार बार जालौन जाने की जिद करने लगी। वहां पहुंची तो देखा कि एक बड़े त्यागी सन्त कूड़े के ढेर पर मिली बच्ची को लेकर बैठे थे। मुझसे कहा कि तुम रणचण्डी बनकर बहुत गरजती हो, अब वात्सल्य बहाओ। साध्वी ने कहा कि सन्यासी होने के बाद भी मैं मोह से बंधी हूं। वात्सल्य ग्राम मेरी नाद सृष्टि है जहां सैकड़ों बच्चियों को पाला, पोसा, पढाया, उनका विवाह किया और विदा करते हुए फूट फूट कर रोई हूँ। उन्होंने कहा कि कन्या को मत मारो। मनु और शतरूपा के घर भी पहले कन्याएं ही जन्मीं।

कथा में अनेक जनप्रतिनिधि व गणमान्य विभूतियां सम्मिलित हुईं। प्रमुख रूप से भारतीय लोक शिक्षा परिषद लखनऊ चैप्टर के संरक्षक संजय सेठ, गिरिजाशंकर अग्रवाल, अध्यक्ष उमाशंकर हलवासिया, उपाध्यक्ष आशीष अग्रवाल, महामंत्री भूपेन्द्र कुमार अग्रवाल ‘भीम’, कोषाध्यक्ष राजीव अग्रवाल, पंकज बोरा, भारत भूषण गुप्ता, मनोज अग्रवाल, जी.डी. शुक्ला, जगमोहन जायसवाल, देशदीपक सिंह, शशिकांत पाण्डेय, लवकुश त्रिवेदी, राकेश पाण्डेय, सुदर्शन कटियार, उदय सिंह, सतीश वर्मा, प्रदीप शुक्ला, अमित मौर्या, रुपाली गुप्ता, दीपक मिश्र, रामकिशोर लोधी, रानी कनौजिया, संतोष तेवतिया, देवी प्रसाद गुप्ता, डा. एस.के.गोपाल आदि उपस्थित रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ