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अपोलोमेडिक्स : एमनियो पैच तकनीक से बचाई गर्भस्थ बच्चे की जान

एम्निओटिक फ्लूइड के लीकेज से प्रेग्नेंसी में होने वाली समस्या के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण बना अपोलोमेडिक्स

लखनऊ। गर्भवती महिला की एम्निओटिक मैम्ब्रेन लगभग 24 सप्ताह में क्षतिग्रस्त हो गई थी जिसकी वजह से एम्निओटिक फ्लूइड लीक हो गया था और गर्भस्थ की जान बचाना बेहद मुश्किल था। ऐसे में नॉवल तकनीक के आधार पर अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग एवं फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. भूमिका बंसल ने एमनियो पैच तकनीक का इस्तेमाल किया। हॉस्पिटल प्रशासन का दावा है कि इस तकनीक का प्रयोग प्रदेश के निजी अस्पताल में पहली बार किया गया है। इससे प्रेग्नेंसी को 3 से 4 सप्ताह तक खींचा जा सका। जिसके बाद लगभग 29 सप्ताह पर डिलीवरी हुई और फिर न्योनेटोलॉजी विभाग के डॉ. अनुभव के प्रयास से बच्चे को सकुशल डिस्चार्ज किया गया।  
डॉ. भूमिका बंसल ने बताया कि हॉस्पिटल में एक गर्भवती महिला लगभग 24 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के साथ आई थी। उसकी एम्निओटिक मैम्ब्रेन क्षतिग्रस्त हो गई थी और सारा फ्लूइड निकल चुका था। पहले भी दो बार मिसकैरिज हो चुके थे, इसलिए इस बच्चें को बचाना बेहद जरूरी था। उन्होंने बताया कि एम्निओटिक फ्लूइड एक हल्के पीले रंग का द्रव है जिससे गर्भ में विकसित हो रहे भ्रूण को सुरक्षा मिलती है और वो इसी के चलते आसानी से मूवमेंट भी करता है। साथ ही बच्चे के लंग्स का ठीक तरह से विकास हो पाता एवं एक्सपैंड कर पाते हैं। इसी फ्लूइड के कारण बच्चे के हाथ पैर भी सही से विकसित हो पाते हैं। किसी वजह से अगर फ्ल्यूड मैम्ब्रेन फट जाए तो एम्निओटिक फ्ल्यूड की कमी के कारण नवजात के फेफड़े विकसित नहीं हो पाते हैं और उसके हाथ, पैर व मुंह में सिकुड़न उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति में अगर प्रेग्नेंसी को कुछ समय के लिए बढ़ाया भी जाए तब भी नवजात के लंग्स पर प्रेशर बढ़ने के कारण उसे जीवन भर के लिए लंग्स की बीमारियां हो सकती हैं। इस केस में सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे प्रेग्नेंसी का समय बढ़ाया जाए और भ्रूण के सम्पूर्ण व सुरक्षित विकास के लिए फ्लूइड को कैसे रिस्टोर किया जाए।

डॉ. भूमिका ने बताया कि ऐेसे केस में नवजात को बचाने के लिए एक नई तकनीक एमिनो पैच एवं एमिनो इनफ्यूजन का इस्तेमाल किया गया। इससे एम्निओटिक मैम्ब्रेन में फ्लूइड डाला जाता है, लेकिन मैम्ब्रैन क्षतिग्रस्त होने की वजह से उसमें से फ्लूइड नही टिक पाता। हमने एक रिसर्च बेस तकनीक को अपनाया जिसमें प्लेटलेट रिच प्लाज्मा और क्रायोप्रेसिपिटेट डाला गया। फिर ऊपर से फ्लूइड डाल दिया गया, जिससे मैम्ब्रेन का होल सील हो जाता है और फ्लूइड कुछ दिन के लिए रुक गया। ये केस काफी जटिल था क्योंकि सारा फ्लूइड ड्रेन हो चुका था और 2 से 3 मिलीमीटर की एक छोटी सी पॉकेट थी, जिसमें अल्ट्रासाउंड गाइडेड निडिल डाली के जरिए पहले हमने प्लेटलेट रिच प्लाज्मा डाला, फिर क्रायोप्रेसिपिटेट और फिर फ्लूइड डाला। ऐसा करके प्रेग्नेंसी के समय को कुछ सप्ताह और बढ़ाया गया। जिसके बाद लगभग 29वें सप्ताह में सफल डिलीवरी कराई गई और नवजात को एनआइसीयू में रखा गया। 
वहीं डॉ. अनुभव ने बताया कि जो नवजात समय से पहले पैदा होते हैं उन्हें दिक्कते आती है। हालांकि इस प्रेग्नेंसी को 3 से 4 सप्ताह तक बढ़ाया गया। ऐसे में बच्चे को काम्प्लीकेशन कम हुआ। साथ ही जब नवजात पैदा हुआ तो उसके लंग्स काफी हद तक एक्पैंडेड थे और उसके हाथ, पैर व मुंह में किसी भी प्रकार की कोई सिकुड़न नहीं थी क्योंकि एम्निओटिक फ्ल्यूड बहने के बाद भी बच्चे के आस पास पानी की कमी नहीं रही। जिसके बाद उसे वेंटिलेटर पर केवल एक सप्ताह के लिए रखा गया। साथ ही उसे लंग्स को मजबूत करने की दवाएं दी गईं। डॉ. अनुभव ने बताया कि हमारे सेंटर में एक किलो या डेढ किलो वजन से कम के बच्चों को सर्वाइवल रेट 90 प्रतिशत तक का है। इस केस में लगभग 29 हफ्ते की प्रैग्नेंसी थी। ऐसे केस में नवजात का सर्वाइवल रेट 60 से 70 प्रतिशत होता है। इसे वेटिलेटर पर भी तीन से चार दिन रखा गया। 

अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सीईओ और एमडी डॉ. मयंक सोमानी ने बताया कि देशभर में बहुत कम सेंटर हैं जहां पर फीटल मेडिसिन की सुविधा उपलब्ध है। हमारे यहां ऐसी हाई रिक्स प्रेग्नेंसी को सुरक्षित डिलीवर किया जा सकता है। इसके अलावा देश भर में गिने चुने निजी अस्पतालों में 26 से 28 सप्ताह से कम के नवजात को बचाया जा सकता है। अपोलोमेडेडिक्स हॉस्पिटल हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की देखभाल करने के लिए एक वन स्टॉप सेंटर है और हमारा एनआइअसीयू वर्ल्ड क्लास स्टैंडर्ड का है। यहां पर प्रदेश भर से रेफर किए गए  26 से 28 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के केसेज में जरूरत पड़ने पर सफलतापूर्वक डिलवरी कराई जाती है। साथ ही हमारे यहां 28 सप्ताह में बच्चों को डिलीवर करने का सर्वाइवल रेट 90 प्रतिशत के करीब है।

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