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सामाजिक हकीकतों पर आधारित है "एक आहट" और "साथ तुम्हारा"

लखनऊ। एक वक्त था जब कई पीढ़ियां एक साथ संयुक्त परिवार में रहती थी और सभी एक दूसरे का ख्याल रखते थे। यही नहीं बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता व घर के बुजुर्गों के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उठाते थे। लेकिन बदलते दौर के साथ ही लोग संस्कार भी भूलते जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी संयुक्त परिवार में रहना पसंद नहीं कर रही है। हालत यह है कि बेटे व बहु के होने के बावजूद बुजुर्ग माता-पिता अकेले रहने को मजबूर हैं तो अधिकांश वृद्धाश्रम में जीवन यापन कर रहे हैं। फेस्का फिल्म्स के बैनर तले बनी शॉर्ट फिल्म "एक आहट" इन्हीं हालातों को दर्शाती है। इसके साथ ही शॉर्ट फिल्म "साथ तुम्हारा" उन लोगों के जीवन को दर्शा रही है, जिनका अपने जीवनसाथी से साथ छूट गया है। 

मंगलवार को अलीगंज इलाके में स्थित एक रेस्टोरेंट दोनों फिल्मों की स्क्रीनिंग सेरेमनी आयोजित की गई। कलाकारों के साथ एक मुलाकात कार्यक्रम का शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि मौजूद अमरेश कुमार झा (डीजीएम भारतीय स्टेट बैंक) ने किया। जिसमें फिल्म्स के कलाकार देवेंद्र मोदी, कीर्तिका श्रीवास्तव कांति, अखिलेश श्रीवास्तव व पूनम जायसवाल ने अपने अनुभवों को साझा किया। फिल्म में डीओपी मोहम्मद दानिश थे जबकि एडिटिंग की जिम्मेदारी राहुल दुबे, मोहम्मद दानिश और स्नेहिल श्रीवास्तव ने बखूबी निभाई। 

राजीव प्रकाश और राजेश श्रीवास्तव के निर्देशन में बनी दोनों शॉर्ट फिल्म का निर्माण आभा प्रकाश और अर्चना अपूर्वा ने किया है। निर्देशक राजीव प्रकाश ने बताया कि दोनों फिल्म सामाजिक परिदृश्य का सशक्त ताना बाना है और आज के सामाजिक विषयों का सटीक चित्रण करने में सफल रही हैं। "एक आहट "फिल्म में मां बाप अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन उनकी छोटी छोटी खुशियों के लिए न्योछावर कर देते है, जबकि जीवन के अंतिम पड़ाव पर उनको बच्चों द्वारा एकाकीपन, घुटन और वृद्धा आश्रम की राह देखनी पड़ती है। 

वहीं दूसरी फिल्म "साथ तुम्हारा" ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए एक महिला व एक पुरुष की कहानी है जो अपना जीवन साथी अपने जीवन काल के बीच में ही खो देते हैं। शेष जीवन बिताना एक पहाड़ सा लगता है। ऐसे में यदि किसी का सहारा ले या बने तो परिवार और समाज इसको मान्यता देगा, स्वीकार होगा। जीवन के अंतिम पड़ाव पर एक साथी की आवश्यकता पड़ती है। आज के समाज की चकाचौंध और बच्चों का महत्वाकांक्षी हो जाना, उसके लिए मां बाप को भी छोड़ देना, ऐसी स्थितियों में यदि समाज से लड़कर कोई अपना जीवन साथी किसी दूसरे को बना ले तो अंत समय निश्चित ही सुखदायी होगा। आज दोनों ही परिस्थितियां तेजी से समाज को विकृत स्वरूप प्रदान कर रही है।
राजीव प्रकाश ने बताया कि जल्द ही सामाजिक विषमताओं वाले विषय पर फिल्म बनाने की तैयारी है। अगली फिल्म "उसकी तलाश में" बनेगी, जिसमें लड़का एक ऐसी लड़की की तलाश करता है जो माता पिता को  साथ रख सके, उनकी उचित देखभाल कर सकें और उनकी हर समस्या में बराबर की भागीदार बन सके। इस तरह फिल्म निर्माण में नवोदित कलाकारों को साथ लाने और उनकी प्रतिभा को निखारने का प्रयास भी है। उन्होंने बताया कि अभी पांच फिल्में और तैयार की जाएंगी। 3 वीडियो एल्बम भी फ्लोर पर हैं और इस साल के अंत में फिल्म "खामोश निगाहें" पूरी कर लेने की संभावना है। 

राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान समय में कलाकारों की प्रतिभाओं को सही दिशा प्रदान कर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने की पूरी कोशिश है। फेस्का फिल्म्स ने अनेक कलाकारों को न सिर्फ मंच प्रदान किया बल्कि उनको राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने में सही दिशा दी है। अगले माह कलाकारों के चयन के लिए नृत्य, गायन और फैशन शो का भी आयोजन किया जाएगा। "मदर्स स्पेशल" के अंतर्गत डांस और रैम्प शो का आयोजन भी शामिल है। उन्होंने बताया कि जिस तरह सरकार महिला सुरक्षा के प्रति अपना दायित्व बखूबी निभा रही है उसी तरह वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान और सुरक्षा पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इसलिए हमने फिल्मों में इसी विषय को आधार माना है कि समाज में जन्म ले रही बुराई के प्रति आज की युवा पीढ़ी जागरूक करना है। जिससे वह समाज में बदलाव लाकर भारतीय संस्कृति को अपनाकर इसको पुराना स्वरूप दे सके। परिवार में खुशियों का वास हो और फिर संयुक्त परिवार की अवधारणा को नया आयाम मिल सके।

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