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मेदांता हॉस्पिटल : एनआइसी में सीटीओ तकनीक का किया लाइव शोकेस

मेदांता सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल में नीडल होल के जरिये वाल्व रिप्लेसमेंट और ब्लाक आर्टरी खोलने की हुई सफल सर्जरी

लखऩऊ। मेदांता सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल की इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ.पीके गायल ने सीटीओ (क्रोनिक टोटल आक्लूजन) का लाइव शोकेस किया। ये लाइव शोकेस एनआईसी (नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल आफ कार्डियोलॉजी सोसाइटी) के कार्यक्रम के दौरान किया गया। जिसमें उत्तर प्रदेश की ओर से मेदांता सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल ने सीटीओ का लाइव शोकेस किया। लखनऊ मेदांता अस्पताल के इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. पीके गोयल को सीटीओ करने का लम्बा अनुभव है।
उन्होंने बताया कि सीटीओ यानि क्रोनिक टोटल आक्लूजन में मरीज की आर्टरी बंद हो जाती है इसका पता मरीज को परेशानी बढ़ने के बाद ही चलता है। जिस केस का लाइव शोकेस किया गया उसमें भी मरीज को पैदल चलने के दौरान सीने में दर्द उठता था उसकी आर्टरी लगभग दो साल से बंद थी। अगर इंटरवेंशन नहीं किया जाता तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते थे। इस केस में भी अब तक ओपेन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती थी जिसे अब सीटीओ के माध्यम से किया गया। ये विशेषज्ञता देश में केवल आइजेसीटीओ (इंडो जैपनीज सीटीओ ग्रुप) के चार विशेषज्ञ सर्जन द्वारा किया जाता है। वहीं लखनऊ मेदांता अस्पताल के डॉ. पीके गोयल भी हैं जिन्हें सीटीओ में दक्षता हासिल है। सीटीओ तकनीक में एक तार के माध्यम से आर्टरी को खोला जाता है। ये नीडल होल सर्जरी होती है। उन्होंने जानकारी दी कि एनआईसी में इस लाइव प्रजेंटेशन के माध्यम से मेदांता हॉस्पिटल ने देश-विदेश में बैठे कार्डियक सर्जन्स को सीटीओ का लाइव प्रदर्शन करके दिखाया।
वहीं डॉ. गोयल ने टावी (ट्रांस कैथेटर एओटिक वाल्व इम्प्लांट) तकनीक से कार्डियक मरीजों का इलाज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मरीज के एओर्टिक वाल्व खराब हो जाने पर एकमात्र विकल्प ओपेन हार्ट सर्जरी होता है। ये रिस्की होती है साथ ही इनमें मरीज व डॉक्टरों को कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन लखनऊ मेदांता अस्पताल में इस तकनीक का प्रयोग कर नीडल होल के जरिये एक तार में बैलून डालकर वाल्व को रिप्लेस कर दिया जाता है। इस प्रोसीजर में केवल लगभग 4 से 5 मिमी मीटर का नीडल होल किया जाता है जिसे सर्जरी के बाद बंद कर दिया जाता है। इस तकनीक से न ही मरीज को ज्यादा समस्या होती है और न ही सर्जरी में डॉक्टर को किसी भी प्रकार की जटिलता का सामना करना पड़ता है। साथ ही मरीज का अस्पताल में रहने का खर्च भी काफी हद तक कम हो जाता है।

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