Pages

ग्लोबल चिंता का विषय है पर्यावरण

लखनऊ। पृथ्वी की उत्पत्ति, उसके रहस्यों, उसमें हो रहे परिवर्तनों पर व्यापक विमर्श और मंथन करने के लिए आज शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, शोधार्थियों के व्याख्यान भी हुए और अनेक महत्वपूर्ण शोधपत्र भी प्रस्तुत किए गये। नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय अलीगंज में “सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्रघाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद महाराजा वीर विक्रम विश्वविद्यालय त्रिपुरा के कुलपति प्रोफेसर सत्यदेव पोद्दार ने कहा कि पर्यावरण की समस्या का समाधान तभी होगा जब आप इतिहास की ग़लतियों से सबक़ लेंगे। आज की पीढ़ी को ये जानने की ज़रूरत है कि हमसे कहाँ पर गलती हुई। उन्होंने कहाकि वर्तमान पीढ़ी अगर चाहती है कि यदि उनके बच्चे साफ़ हवा फूल पौधे देखे तो अभी से जागरुक होना होगा। हमें आने वाली पीढ़ी की चिंता करना ज़रूरी है। धारणीय विकास के लिए आवश्यक है कि प्रकृति के प्रति आत्मीयता का बोध व सोच हम सभी लोग विकसित करें। हम प्रकृति से उतना ही लें, उतने का ही उपभोग करें जितना आवश्यक है। उन्होंने यह भी आह्वान किया कि प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग करने वालों के विरुद्ध और कठोर कानून बनाने एवं कडे दंड का प्रावधान करने की आवश्यकता है। 

अपने स्वागत भाषण में प्राचार्या प्रो. अनुराधा तिवारी ने कहाकि पर्यावरण की चिंता बचपन से की जानी चाहिये। इस सेमिनार से जो निष्कर्ष निकलेंगे वो सारी देश दुनिया के लिए लाभदायक होंगे। उन्होंने कहाकि आज इंटरनेट के दौर में जानकारी प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है। प्राचार्य ने मुख्य अतिथि सहित बीज वक्ता डाक्टर अमित धारवारकर (उप महाप्रबंधक भू विज्ञान सर्वेक्षण), विशिष्ट अतिथि विधान परिषद सदस्य पवन सिंह चौहान, नालंदा विवि में संस्कृत प्रोफेसर विजय कर्ण, प्रोफेसर अरुण मोहन शेरी, प्रोफेसर एनके पाण्डे (भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष) का विस्तार से परिचय देते हुए स्वागत किया। गोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर शरद वैश्य ने गोष्ठी की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सतत विकास पर सम्यक् विचार की आवश्यकता है। आज आर्टिफ़िशल इंटेल्लीजेंस के माध्यम से बहुत कुछ किया जा रहा है। गोष्ठी में सोविनियर सहित लोयला कालेज के प्रोफेसर केएस सुमन द्वारा सम्पादित संस्कृत ई जर्नल जाह्नवी का विमोचन भी किया गया। साथ ही डा. राजीव यादव द्वारा लिखित पुस्तक “understanding of environment थ्रू literature” का भी विमोचन इस अवसर पर किया गया।

बीज वक्ता डा. अमित धारवरकर ने अपने अन्तरकर्टीका अभियान को लोगों से साझा किया। उन्होंने कहाकि पर्यावरण कोई स्थानीय या एक देश का मुद्दा नहीं है बल्कि ये ग्लोबल चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि अंटार्टिका नो मैन लैंड होने के कारण उसका चयन अभियान के लिए किया गया। अंटार्टिका के विषय में एक खास बात उन्होंने बताया कि आप पानी पर भी वहाँ चल सकते हैं।शोधार्थियों द्वारा किए गए प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने बताया कि पर्यावरण के प्रति लोगों की कुछ जागरूकता बढ़ी है इसलिए ओज़ोन परत का क्षरण कुछ कम हुआ है। एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कहा कि हम सबको प्रकृति के साथ संतुलन बैठाकर चलने की आदत डालनी होगी। जल बचाने का अभ्यास हमें घर से ही करना होगा। उन्होंने ये भी कहा कि बेटियों को आगे बढ़कर जागरूकता लाने का काम करना होगा। आईआईटी लखनऊ के निदेशक प्रोफेसर अरुण मोहन शेरी ने कहा कि वर्तमान में ई वेस्ट पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इलेक्ट्रॉनिक सामग्री की डाम्पिंग वैज्ञानिक तौर तरीक़े से करनी चाहिये। भारत थ्री ट्रीलियन अर्थ व्यवस्था की ओर तभी बढ़ सकेगा जब पर्यावरण संतुलित होगा।प्रोफेसर एनके पांडे ने कहाकि पर्यावरण के प्रति शिक्षकों और छात्रों की बड़ी भूमिका है। एक शिष्य जब शिक्षक के सामने बड़ा कार्य करता है तो शिक्षक को गर्व होता है।उन्होंने छात्र छात्राओं का आवाहन किया कि वे अपने मन और शरीर को भी सतत विकास की ओर ले जायें।प्रोफेसर विजय कर्ण ने कहा कि धारणिय विकास की आवश्यकता है। पंचभूत ही भगवान है। हमें पृथ्वी जल आकाश और हवा की रक्षा करनी है। उन्होंने सरकार की सुफ़ला सूजला और नीली अर्थव्यवस्था की चर्चा करते हुये कहा कि ये अत्यंत महत्वकांक्षी है। आयोजन सचिव डाक्टर राघवेंद्र प्रताप नारायण ने गोष्ठी की परिकल्पना प्रस्तुत करते हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस सेमिनार में विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के लिए चार तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न विशेषज्ञों ने अपने विचार के साथ ही शोध पत्र भी प्रस्तुत किये। गोष्ठी के उद्घाटन सत्र का सफल और प्रभावी संचालन डा. शालिनी श्रीवास्तव एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रताप नारायण ने किया। कार्यक्रम में आयोजन से जुड़ी समितियों के डा. पुष्पा यादव, डा. ज्योति, डा. पारुल मिश्र, डा. राहुल, डा. रोशनी, डा. भास्कर शर्मा सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं देश के विभिन्न भागों से पधारे शोधार्थी वैज्ञानिक, शिक्षाविद, लखनऊ के विभिन्न कालेजों के प्राचार्य, शिक्षक एवम छात्र छात्राएँ बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ