Pages

नगर निगम की अनदेखी से तड़के गिरी तीन मंजिला बिल्डिंग, एक की मौत

लखनऊ। जो नहीं होना था आखिर बुधवार को वहीं हो गया। नगर निगम की रिवर बैंक कालोनी में तीन मंजिला इमारत तड़के भरभराकर गिर गयी। इस हादसे में एक 22 वर्षीय युवक की दबकर मौत हो गई है। ऐसा नहीं है कि नगर निगम को जर्जर इमारत की जानकारी नहीं थी, मगर अपनी कालोनी से कोई लाभ नहीं मिलने के कारण नगर निगम प्रशासन सबकुछ जानकर भी अंजान बना हुआ था। नगर निगम की अनदेखी ने एक युवक की जान ले ली। हादसे की जानकारी होने पर मौके पर बचाव कार्य के लिए एसडीआरएफ की टीम ने काम शुरू कर दिया है। प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक ने भी घटना स्थल पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया। जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश, नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी व अपर नगर आयुक्त अमित कुमार समेत नगर निगम की पूरी टीम मौके पर पहुंच गयी है। अब जर्जर मकानों की सूची तैयार करवाई जा रही है। 

कालोनी के मकानों के जर्जर होने को लेकर ज्ञान त्रिवेदी नाम के व्यक्ति ने नगर निगम में कई बार शिकायतें की थी। यहां भूख हड़ताल पर लोग बैठे। नगर निगम को मजबूरी में एक एक मकान का सर्वे कराना पड़ा। कई दिनों के सर्वे रिपोर्ट में अवैध कब्जे सामने आए थे। मगर अधिकारियों ने फ़ाइल को दबा दिया। आखिरकार यह इमारत ध्वस्त हो गई और 22 वर्षीय युवक की मौत हो गई। ज्ञान त्रिवेदी का आरोप है कि इस पूरे मामले में नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। इसके अलावा मृतक युवक के परिवारी जनों को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने की भी मांग की जा रही है। 

पॉश इलाके में कभी लखनऊ की शान हुआ करती रिवर बैंक कालोनी बदहाल हालात पर आंसू बहा रही है। गोमती सदन की जो बिल्डिंग गिरी है उसके अलावा यहां सैकड़ों मकान जर्जर हो चुके हैं। छते टपक रही हैं। दीवारों में दरारें आ चुकी है। मकानों की मरम्मत के लिए दर्जनों बार गुहार लग चुकी है लेकिन नगर निगम ने अपनी आंखें बंद रखी हैं। 

नगर निगम ने यह कालोनी वर्ष 1951 में बसाई थी। लगभग 300 आवास बनाए गए। अपनी आय के श्रोत बढ़ाने के लिए लोगों को किराए पर आवास आवंटित किए गए। चौड़ी सड़कें व पार्क की सुविधा है। समस्त व्यवस्था नगर निगम खुद करवाता था। मकानों का मरम्मत कार्य भी नगर निगम के ही जिम्मे था लेकिन अब इस कालोनी की ओर से नगर निगम ने आंखे फेर ली हैं।

रिवर बैंक कालोनी में नगर निगम को ज्यादातर आवंटियों से अधिकतम 100 रुपए ही किराया मिल रहा है। इतनी कम धनराशि से न तो मरम्मत कार्य हो पा रहा है और न कालोनी में कोई सुविधा मुहैया हो पा रही है। आवंटियों ने आवासों को उनके नाम रजिस्ट्री करने के लिए कई बार निवेदन किया लेकिन शासन से अनुमति न मिलने से मामला लटका पड़ा है।

ज्यादातर कॉलोनी में अवैध कब्जे 

रिवर बैंक कॉलोनी के आधे से अधिक बंगलों और फ्लैटों में रहने वाले अवैध कब्जेदार हैं। मूल आवंटी अवैध तरीके से इन्हें मकान बेचकर चले गए हैं और नगर निगम कर्मचारियों की मिलीभगत से इनके नाम किरायेदारी भी ट्रांसफर करा गए हैं। इसके लिए गलत तथ्यों और दस्तावेजों का सहारा लिया गया है। नगर निगम के नियम के तहत किरायेदारी सिर्फ खून के रिश्ते वाले को ही ट्रांसफर हो सकती है। इसमें फर्जीवाड़ा कर बहुत लोगों ने करोड़ों की संपत्तियों पर कब्जा कर रखा है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ