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संस्कृति को जीवित रखने में लोकनृत्यों की अहम भूमिका - ज्योति किरन

दस दिवसीय लोक नृत्य कार्यशाला का समापन

देश विदेश के लोगों ने जानीं राई, शेरा व कर्मा नृत्य की बारिकियां

लखनऊ। ‘‘लोक नृत्य महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे किसी विशेष क्षेत्र की संस्कृति को जीवित रखने में मदद करते हैं। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किए जाते हैं। यह आनंद और प्रसन्नता को अभिव्यक्त करने वाले सरल नृत्य हैं जो शरीर की चाल, चेहरे की भाव-भंगिमाएँ, वेशभूषा, आभूषण, सजावट के माध्यम से सामने आते हैं।’’ ये बातें लोक नृत्य विशेषज्ञ ज्योति किरन रतन ने कहीं। वे गुरुवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान, जॉइन हैण्ड फाउण्डेशन एवम लोक आंगन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय आनलाइन लोक नृत्य कार्यशाला के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहीं थीं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के लोक नृत्यों को समुचित प्रोत्साहन व संरक्षण देने की आवश्यकता है अन्यथा इन्हें लुप्त होने से नहीं बचाया जा सकता।

संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि दस दिन तक ऑनलाइन चली इस कार्यशाला में देश-विदेश के लोगों ने राई, शेरा व कर्मा नृत्य की बारिकियां सीखीं। कार्यशाला के समापन समारोह में विविध गीतों पर प्रतिभागियों ने नृत्य की प्रस्तुतियां दी। जिसमें सनफ्रांसिस्को से रचना भारद्वाज, महाराष्ट्र के थाणे से तनु भार्गव, दिल्ली से पूर्णिमा धर्मेश कानूनगो, झारखंड के बोकारो से इप्शिता तिवारी, मध्य प्रदेश के भोपाल से इरावती सिंह, सरोज सिंह, आरती सिंह, यूपी के मीरजापुर से आद्रिका अग्रहरि, काव्या अग्रहरि, कानपुर से कल्पना सक्सेना, फतेहपुर से आकर्षि अग्रहरि तथा लखनऊ से आस्था अग्रवाल, अशिमा, अर्चना अग्रवाल, आस्था सिंह, ज्योति श्रीवास्तव, माधुरी देवी, डॉ. प्रिया लक्ष्मी, सुषमा प्रकाश, शशि सिंह, सीमा अग्रवाल, सुमन शर्मा एवं सुनीता बम आदि सम्मिलित रहे।

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