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‘‘हरेला’’ पखवाड़ा शुरू, 17 जुलाई को मनाया जाएगा लोकोत्सव

सबसे अच्छी तीन हरेला टोकरियों को किया जाएगा सम्मानित

लखनऊ। पर्वतीय महापरिषद के तत्वावधान में 7 से 17 जुलाई तक ‘‘हरेला पखवाड़ा’’ मनाया जा रहा है। हरेला उत्तराखण्ड का प्रकृति व पर्यावरण से जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण त्यौहार है। पर्वतीय महापरिषद के अध्यक्ष गणेश चन्द्र जोशी ने बताया कि मकर संक्रान्ति पर सूर्य देव जहां उत्तरायण होते हैं वहीं कर्क संक्रान्ति पर सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं। इसके कारण दिन की अपेक्षा रात बड़ी होने लगती हैं। पर्वतीय महापरिषद इस बार एक विशेष अंदाज में हरेला पर्व को मना रहा है। यह पर्व पर्वतीय समाज के अधिकांश लोगों के घर पर मनाया जाता है। इसे पर्यावरण के संतुलन एवं परिवार में सुख समृद्धि के लिये मनाया जाता है। महापरिषद के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के सहयोग से इस पर्व को हरेला उत्सव के रूप में मना रही है। घर-घर में जो हरेला पर्व मनाते हैं वे 16 जुलाई को इस पर्व को मनाएंगे तथा दो अलग-अलग टोकरियों में हरेला उगा रहे हैं। एक टोकरी को 17 जुलाई को सायं 6ः00 बजे महापरिषद भवन में लेकर आयेंगे जहां पर सभी हरेले की टोकरियों में से श्रेष्ठ तीन टोकरियों का चयन होगा और उन्हें सम्मानित किया जायेगा। इस प्रतियोगिता के माध्यम से महापरिषद का उदेश्य जन-जन को, विशेष रूप से युवा पीढ़ी को इस पर्व से जोड़ना है।

पर्वतीय महापरिषद के महासचिव महेन्द्र सिंह रावत ने बताया कि हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं, दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है। इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी। साथ ही प्रभु से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है। इस दिन घर में हलुवा, पूड़ी, खीर आदि पकवान भी बनाए व बांटे जाते हैं।

सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रभारी महेन्द्र पन्त ने बताया कि उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है। हरेला पर्व उत्तराखंड के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में भी हरियाली पर्व के रूप में मनाया जाता है। हरियाली या हरेला शब्द पर्यावरण के काफी करीब है। ऐसे में इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही पौधारोपण भी किया जाता है। जिसमें लोग अपने परिवेश में विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रोपते हैं। सम्पूर्ण कार्यक्रम सांस्कृतिक सचिव गोविन्द सिंह बोरा व ख्याली सिंह कड़ाकोटी, नरेन्द्र सिंह फत्र्याल, नीता जोशी, सरोज खुल्बे आदि के सहयोग से संचालित किया जा रहा है।

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