Pages

साक्ष्य आधारित चिकित्सा और पारंपरिक उपचारों का तर्कसंगत उपयोग समय की मांग है - डॉ. सत्तीगेरी

लखनऊ। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ 12 से 17 सितंबर तक आयुष शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए दक्षता विकास एवं सतत चिकित्सा शिक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम की मेजबानी कर रहा है। डॉ. रितु त्रिवेदी (वैज्ञानिक समन्वयक) और डॉ. आनंद कुलकर्णी (कार्यकारी समन्वयक) ने पूरे भारत से आए 28 प्रतिभागियों का स्वागत किया जो पारंपरिक औषधीय के विशेषज्ञ हैं। डॉ. राधा रंगराजन (निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई) ने पारंपरिक चिकित्सा और आधुनिक अनुसंधान के विशेषज्ञों को एक छत के नीचे लाने के लिए कार्यक्रम की सराहना की।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सीएसआईआर-पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (सीएसआईआर-टीकेडीएल) यूनिट की प्रमुख डॉ. विश्वजननी सत्तीगेरी ने बताया कि स्वास्थ्य और कल्याण के क्षेत्र में हजारों वर्षों से तथा अनेक पीढ़ियों से चली आ रही बहुमूल्य परम्पराएँ एवं संस्कृति भारत की समृद्ध विरासत का हिस्सा हैं। वर्तमान में हमारे पारंपरिक हर्बल तथा हर्ब एवं खनिज फॉर्मूलेशन का एक बड़ा हिस्सा भोजन या आहार पूरक के रूप में चिह्नित किया जा रहा है और उनमें से अधिकतर ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) उत्पादों हैं। बदलते समय और उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ तारतम्य मिलते हुए, हम अब काफी हद तक साक्ष्य-आधारित चिकित्सा और पारंपरिक उपचारों के तर्कसंगत उपयोग पर निर्भर हो चुके हैं। न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी व्यापक स्वीकृति प्रदान करने के लिए आधुनिक विज्ञान और आधुनिक चिकित्सा आधारित पारंपरिक दवाओं के अनुसंधान एवं विकास की परिकल्पना की गई है। 
उन्होने बताया कि नए अनुसंधान एवं विकास के संदर्भ में बौद्धिक सम्पदा (आईपीआर) संरक्षण के मामले सामने आते हैं। पारंपरिक ज्ञान से संबंधित आईपीआर पहलू क्या हैं? स्वास्थ्य सेवा में पारंपरिक और एकीकृत अनुसंधान से संबंधित सीएसआईआर की गतिविधियों और पारंपरिक ज्ञान के आईपीआर पहलुओं को किस प्रकार से शामिल किया गया है इस बारे में भी उन्होने विस्तार से चर्चा की।
यह छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम पारंपरिक चिकित्सा चिकित्सकों को आधुनिक औषधि अनुसंधान एवं विकास के बारे में जागरूक करने के लिए बनाया गया है। दवाओं की खोज के विभिन्न पहलुओं के अनुसार सत्रों को विभाजित किया गया है। उदाहरण के लिए, प्राकृतिक उत्पाद रसायन विज्ञान, धातु और कीटनाशक विषाक्तता, फाइटोकेमिकल विश्लेषण, फार्मास्यूटिक्स और फार्माकोकाइनेटिक्स, नियामक विष विज्ञान अध्ययन, आदि। कार्यक्रम में सीएसआईआर-सीडीआरआई में हर्बेरियम, जीएलपी प्रयोगशालाओं के साथ-साथ सीएसआईआर-एनबीआरआई और सीएसआईआर-सीआईएमएपी का दौरा भी शामिल है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ