Pages

लोक और शास्त्रीय कलाओं संग दिखा नाट्य का अद्भुत संगम

लखनऊ। संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की अध्यक्ष संध्या पुरेचा और प्रमुख सचिव संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम द्वारा उद्घाटित हुए अमृत युवा कलोत्सव 2022-23 के दूसरे दिन शनिवार को संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में लोक और शास्त्रीय विधाओं के संग मंच नाट्य और कठपुतली नाट्य की विविध प्रस्तुतियां युवा कलाकारों ने मंच पर जीवंत की। इसके संग ही राजधानी के मध्य कलामण्डपम प्रेक्षागृह कैसरबाग में कला समीक्षा पर गायिका मालिनी अवस्थी संग विद्वानों ने विभिन्न आयामों की व्याख्या प्रस्तुत की। रविवार को उत्सव का समापन होगा। 

केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी के संग उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित इस त्रिदिवसीय आयोजन में आज की शाम गाडगे प्रेक्षागृह में शाहजहांपुर के गगनिका सांस्कृतिक समिति के कलाकारों ने कप्तान सिंह कर्णधार के निर्देशन में फाजिल, संजीव, शिल्पा, चित्राली, दुष्यंत, सचिन नितिन आदि कलाकारों ने छड़ और दस्ताना पुतुलों के माध्यम से रामजन्म से लेकर राम-रावण युद्ध और राजतिलक तक के प्रमुख प्रसंग रोचकता के साथ पेश किये। छन्नूलाल मिश्र के शिष्य वाराणसी के प्रतिभाशाली गायक इंद्रेश मिश्र ने राग जोग और रूपक व तीन ताल में अपने विलम्बित व द्रुत खयाल गायन से वातावरण को सुरमई बनाया। अंत में मिश्र राग में एक रचना प्रस्तुत की। उनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्र, हारमोनियम पर ललित सिसोदिया थे तो गायन में दीक्षा चौहान व जाहन्वी ने साथ दिया। 

नोएडा से आयी गुरु देवप्रसाद दास घराने की ज्योति श्रीवास्तव के शिष्य-शिष्याओं ने उनके निर्देशन में ईशा दास, राहुल, वर्षा दास व पंखुड़ी ने ओडिसी नृत्य का लालित्य परोसा। भूपेन्द्र मिश्र के संगीत में पहली रचना राग साबेरी व दरबारी में एक ताल में बंधी थी। बंकिम सेठी के संगीत में दूसरी रचना पल्लवी साबेरी में तीन तालों एकताली, झूला व पहपट् की लयकारियों में खूबसूरती के साथ मंच पर उभरकर आयी। पिता रमेश पाल की लोक विरासत थामने वाले कृष्णपाल ने अपने छोटे-बड़े साथियों के साथ लोकनृत्य दीवारी पाई-डण्डा नृत्य की अद्भुत झलक ओज और उत्साह भरे स्वरों व संयोजनों में मंच पर दिखायी। 

इसी क्रम में पद्मश्री डा. पुरु दाधीच की बहू हर्षिता शर्मा दाधीच और शिष्याओं दमयंती भाटिया व अम्बिका मालवीय ने कथक गतियों व सुंदर हस्तकों में ‘यतिमाला’ का प्रदर्शन किया। ताल के दस प्राण में एक प्रमुख तत्व ‘यति’ है। प्रस्तुति की खूबी थी कि इसमें प्रयोग की जाने वाली अप्रचलित प्राचीन मुद्राएँ, विभिन्न लयकारियाँ के साथ भावों की अभिव्यंजित हुईं। ‘नटवर रंगम’ ने इस रचना ने सुधी प्रेक्षकों को डा.दाधीचि की शैली की याद ताजा करा दी। डा. उर्मिल कुमार थपलियाल का कोलाज शैली में लिखा गया संगीत नाटक शहीदों ने लौ जगायी जो मनीष सैनी के निर्देशन में देवांचलम रंगमण्डल के कलाकारों तुषार, अनुराग शिवा, तरुण, अभय, हर्ष, प्रतीक, विनय, निमेष, प्रणव, जितेन्द्रकुमार अमरेश आदि से ओजस्वी स्वरों में प्रस्तुत किया। नाटक का कला पक्ष भी प्रभावी रहा। इससे पहले आज सुबह कला समीक्षा कार्यशाला में रंग निर्देशक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, प्रो. सुनीरा कासलीवाल, श्यामहरी चक्र, आलोक पराड़कर और गुरुविजय शंकर ने कला समीक्षा के विभिन्न पक्षों पर विचार रखे। कार्यशाला का यह क्रम कलोत्सव के समापन दिवस कल भी चलेगा। कल नाटक, फरवाही नृत्य, भरतनाट्यम, वाद्यवृन्द और कथक की प्रस्तुतियां गाडगे प्रेक्षागृह में होंगी।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ