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मेदांता अस्पताल : हाफ-मैच बोन मैरो ट्रांसप्लांट बना रोगियों के लिए नई आशा की किरण

हाई डोनर स्पेफिफिक एंटीबॉडी बोन मैरो ट्रांसप्लांट से दी नई जिंदगी


लखनऊ। चिकित्सा उपचार में नए प्रतिमान और आयाम रचते हुए मेदांता अस्पताल लखनऊ ने एक महत्वपूर्ण ट्रांसप्लांट में हाफ मैच डोनर का उपयोग करके दो अभूतपूर्व बोन मैरो ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक संपन्न किया। बोन मैरो ट्रांसप्लांट में की गई यह एडवांस्ड प्रक्रिया उन रोगियों के लिए आशा की नई किरण लेकर आई है जो पहले फुल मैच डोनर खोजने की चुनौतियों के कारण सीमित विकल्पों का सामना कर रहे थे। हाफ मैच बोन मैरो ट्रांसप्लांट, जिसे हैप्लोआइडेंटिकल ट्रांसप्लांट के रूप में भी जाना जाता है, संभावित दाताओं के पूल को विस्तारित करता है, जिससे जीवन-रक्षक उपचार की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए उपयुक्त मैच खोजने की संभावना बढ़ जाती है।

मेदांता अस्पताल में इस प्रक्रिया की देखरेख कर रहे हेमेटो-ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. अंशुल गुप्ता ने कहा, “हम खतरनाक बीमारी अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित 22 वर्षीय रोगी में हाई डोनर स्पेफिफिक एंटीबॉडी के साथ यूपी का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने में सफल रहे हैं, जिससे मरीज को नया जीवनदान मिला। डोनर के लिए विशिष्ट एंटीबॉडी की उपस्थिति एंटीबॉडी रिजेक्शन का कारण बन सकती है और इसलिए इसे ज्यादातर मामलों में प्रत्यारोपण के मामले में एक विरोधाभास माना जाता है।

कुशीनगर निवासी 22 वर्षीय मरीज आकाश गुप्ता परिवार के लिए अकेला कमाने वाला है और उसे अपनी मौसेरी बहन से प्रत्यारोपण के लिए हाफ मैच मिला। चिकित्सकों के मुताबिक मरीज को बोन मैरो ट्रांसप्लांट हुए तीन महीने पूरे हो चुके हैं और वह सामान्य जीवन की ओर अग्रसर हैं। वर्ष 2011 में पिता के निधन के बाद मां ने जनरल स्टोर की दुकान शुरू की, जिससे किसी तरह घर का खर्च चल रहा था। मां के इस कार्य में आकाश भी सहयोग कर रहा था। आकाश के मुताबिक वर्ष 2020 से ही वह गंभीर बीमारी से ग्रसित था, इलाज में सरकारी मदद के साथ ही लाखों रुपये खर्च किये। लेकिन इलाज से कोई खास राहत नहीं मिली। जिससे रोजी रोटी के एकमात्र विकल्प दुकान को भी बंद करना पड़ गया।



खुद के इलाज के लिए सोशल मीडिया पर चलाई मुहिम, मिली मदद
स्वास्थ्य में कोई सुधार न होता देख आकाश ने मेदांता अस्पताल में संपर्क किया। इस दौरान आर्थिक रूप से टूट चुके आकाश ने सोशल मीडिया पर मदद के लिए अभियान चलाया। जिसमें लोग मदद के लिए आगे आये और इलाज में खर्च हुए करीब 15 लाख रुपए में 90 प्रतिशत लोगों की मदद से जुटाया। हालांकि आकाश के मुताबिक अभी भी इलाज में प्रति सप्ताह करीब 20 हजार रुपये खर्च हो रहे है।

लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया रक्त कैंसर की एक गंभीर श्रेणी में आता है। इससे पीड़ित 50 वर्षीय पुरुष पर एक और चुनौतीपूर्ण बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रत्यारोपण किया गया।  "मिनिमल इम्यूनोसप्रेशन" के साथ रिजेक्शन के खतरे को कम करने के लिए हमने रोगी के पूरे शरीर को कवर करते हुए 'टोटल बॉडी इरैडिएशन' किया।  टोटल बॉडी इरैडिएशन आम तौर पर रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर के बोन मैरो को रिजेक्ट करने से रोकने के लिए किया जाता है।  डॉ. अंशुल गुप्ता ने कहा कि टीबीआई का प्रदर्शन पहली बार सेंट्रल और ईस्टर्न यूपी के किसी अस्पताल में किया गया है।  मरीज़ अब कैंसर मुक्त है और अपना सामान्य जीवन फिर से शुरू कर चुका है

हाफ मैच बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सफलता अधिक व्यापक और प्रभावी ट्रांसप्लांट करने की दिशा में एक  महत्वपूर्ण कदम है।  मेदांता अस्पताल लखनऊ रोगी परिणामों में सुधार और उपचार विकल्पों के विस्तार पर ध्यान देने के साथ, चिकित्सा में नए प्रयोगों और सफल चिकित्सा प्रतिमानों को गढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

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