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ऑनलाइन चौपाल में दिखी लोकसंस्कृति की अनूठी छठा

दुर्लभ हो रही खतों की सुगन्ध : डा. विद्याविन्दु सिंह


लोक संस्कृति शोध संस्थान ने सजाई आनलाइन चौपाल



'लोक संस्कृति में परदेसी और चिट्ठियां' विषय पर हुई चर्चा


संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने निभाई चौपाल चौधरी की भूमिका


लखनऊ। बाल नृत्यांगना वागीशा पंत ने "परदेसिया से लड़ल नजरिया कजरिया नीक लागे सखिया..." तो स्वरा त्रिपाठी ने "अंगनवा कागा बोले ओ मोरी गुईंया...", पर्णिका श्रीवास्तव ने "लाया डाक बाबू लाया रे संदेशवा..." जैसे गीतों पर ऑनलाइन नृत्य से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं रिद्धिमा श्रीवास्तव ने "परदेसिया ये सच है पिया...", कनिष्का श्रीवास्तव ने "खत लिख दे संवरिया के नाम बाबू...", अंशिका त्यागी ने "चिट्ठी लिखऽतानी जनीह तार बलमू एहीमें भेजऽतानी दिल के प्यार बलमु...", ज्योति किरन रतन ने "ऐसो बेईमान ना भेजो एको पतिया...", "अंखियों में कजरा लगाऊं...", सरिता तिवारी ने "बोले अटरिया पे कागा, बोले मोरे जिया डोले कोई आ रहा है... पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया। मौका था लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा रविवार को आयोजित ऑनलाइन लोक चौपाल का।



"लोक संस्कृति में परदेसी और चिट्ठियां" विषय पर आयोजित लोक चौपाल में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने कहाकि हमारी संस्कृति में पत्र लेखन की लंबी परंपरा है। अनेक गीत हैं परदेसी की पीड़ा के। आज चिट्ठियां दुर्लभ हो गई हैं। फोन ने यह सुख छीन लिया है। खतों की सुगंध दुर्लभ हो गई है। उन्होंने कहाकि उनके पास कई साहित्यकारों व आत्मीय जनों के पत्र हैं जो आज भी सामने आते हैं तो सारी स्मृतियां सजीव हो उठती हैं। इन पत्रों में जो आत्मीयता का स्वर है, दूर बैठे स्पर्श का अनुभव है, संवेदना है, वह लुप्त न हो जाए इसलिए पत्रों को सुरक्षित करना और पत्र लेखन की परंपरा को फिर से परिमार्जित करने की जरूरत है। 'लोक संस्कृति में परदेसी और चिट्ठियां' विषय पर आयोजित लोक चौपाल में संगीत विदुषी प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव तथा डॉ. विद्या विंन्दु सिंह ने चौपाल चौधरी की भूमिका निभाई। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि कोरोना संकट के चलते प्रतिमाह होने वाली लोक चौपाल पिछली दो बार की तरह इस बार भी ऑनलाइन की गई जिसमें विषय आधारित चर्चा, काव्य पाठ, गायन व नृत्य की प्रस्तुतियां हुईं। आयोजन में उत्तर प्रदेश के सुदूरवर्ती जिलों सहित देश के अन्य राज्यों के सुहृदजन भी सहभागी हुए।



चौपाल का शुभारंभ करते हुए संगीत विदुषी प्रोफ़ेसर कमला श्रीवास्तव ने कहिया लौ अइहौ, लिखाय देहो चिट्ठिया, कौनो संदेश ना पठाओ परदेसिया, जब ते गयो है लिहो ना खबरिया, कहवां बिलमाय गयो ओ मोरे रसिया... सुनाकर की। डॉ. संगीता शुक्ला ने विभिन्न संदर्भों का उल्लेख करते हुए कहाकि संदेश पहुंचाने के लिए पहले धावक दौड़ते थे जिन्हें हरकारा कहा जाता था। यह हरकारे रिले रेस की तरह दौड़ते थे और संदेशों का आदान-प्रदान होता था। आजकल के स्पीड पोस्ट की तरह संदेश के लिए यह हरकारे घोड़े का भी उपयोग करते थे। डॉ. अपूर्वा अवस्थी ने चर्चा में भाग लेते हुए राजा जयसिंह और कविवर बिहारी से संबंधित एक वृत्तांत सुनाया। राजा जय सिंह विवाह के बाद रनिवास में चले जाते हैं और उनकी अनुपस्थिति में मंत्री जनता का शोषण करने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में राजकवि बिहारी एक पत्ते पर दोहा लिखकर रनिवास में भेजते हैं- 'नहीं पराग नहीं मधुप मधु नहीं विकास एहि काल, अली अली ही हो बिन्ध्यो आगे कौन हवाल' यह दोहा पढ़कर राजा वापस आकर राज्य को संभाल लेते हैं।



वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. करुणा पांडेय ने रुक जाओ तुम आज प्रवासी, जीवन की गति ठहर गई है... और पिया बसे परदेश में हिय में उपजी पीर... आदि रचनाएं सुनाईं। वरिष्ठ कवि प्रदीप तिवारी धवल ने चिट्ठी आती जाती थी तो संबंधों की तकलियों में प्रेम के धागे भी काते जाते थे... सुनाया। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच के राष्ट्रीय संयोजक और अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास के अध्यक्ष परमानंद पांडेय ने ऐ सड़कों तुम ठंढी रहना, गुजर रहे हैं श्रमजीवी... सुनाया। विषय आधारित गायन प्रस्तुतियों में वरिष्ठ लोक गायिका इंदिरा श्रीवास्तव ने सेर भर गेहुंआ बरिस भर खइबै तोहके जाए न देबै हो..., आरती पांडेय ने महल पर कागा बोला है रे, ऐ सासू जी ऐसी बोली न बोलो अभी तो मेरा मायका राजा है रे... तथा उमा त्रिगुणायत ने पिया मोरे लौट गांव कब अइयो... सुनाया।



गोंडा निवासी लोक गायक शिवपूजन शुक्ला ने एक दिन बड़े सबेरे फोन कीहीस घरवाली दिवाली अबही दूर बहुत है..., पूनम सिंह नेगी ने परदेसी बालम की आई है पाती अंगना मा बोले है कागा सखी..., रेनू दुबे ने आने दे परदेसी बलम को सब को ठिकाने लगा दूंगी..., संगीता खरे ने आवे हिचकी परदेश गए बालम की याद दिलावे हिचकी..., सीमा अग्रवाल ने एक परदेसी मेरा दिल ले गया..., संगीता आहूजा ने जा जा जा रे जा रे कागा इतना संदेशा मोरा कहियो पिया से उन बिन चैन ना आवे..., शक्ति श्रीवास्तव ने जहिया से आयो पिया हमरी महलिया..., सुमन पाण्डा ने जब जब पिया के आवन होईहैं खनके मोर कंगनवा..., शैलजा श्रीवास्तव ने आपन देखी के खरिहनवा..., सर्वेश माथुर ने जो मैं जानत बिसरत हैं सैयां सखी घूंघटा में आग लगा देती..., मंजू श्रीवास्तव ने सैंया बसे परदेस भेजत नाहीं पाती ए हरी..., इंजीनियर दिनेश श्रीवास्तव ने घर आजा परदेसी खिलाऊं तोहे गुड़ देसी... सुनाया। अंजली सिंह ने बोलेला अंगनवा में कागा पिया परदेसवा से आजा..., विद्याभूषण सोनी ने हरखू भैया रे तुम तनिक नहीं घबराना तथा रश्मि उपाध्याय और रेखा मिश्रा ने चकिया गीत परदेसी प्रीतम काहे लिखी झूठी पतिया... सुनाया। नर्मदा श्रीवास्तव 'मधु' ने लिखी लिखी पतिया पठावे बेईमनवां अजहूं न आये परदेसी रे विदेशिया... तथा मधु श्रीवास्तव ने उमड़त आवे ननदी कारी बदरिया हो बलमुआ नाहीं आये हमार छोटी ननदी... अरुणा उपाध्याय ने आंगन बोलत कागा सखी री..., शैलजा पांडेय ने सैयां बेईमान लिखी न एको पतिया गाकर चौपाल को सरस बनाया।



लोक चौपाल में डॉ. भारती सिंह, हेमलता त्रिपाठी, रमा अग्निहोत्री, सीमा अग्रवाल, सुनील श्रीवास्तव, निवेदिता भट्टाचार्य, रागिनी श्रीवास्तव, कीर्ति पंत, मंजू चक्रवर्ती, निशु त्यागी, रंजना शंकर, अनुराधा दीक्षित, पूनम माथुर, शशि चिक्कर, तबस्सुम खान, रेखा अग्रवाल, सुषमा अग्रवाल, हरीतिमा पंत, मिथिलेश जायसवाल, भजन गायक गौरव गुप्ता सहित सैकड़ों लोग सम्मिलित हुए। इस दौरान कोरोना से हताहत होने वाले लोगों को श्रद्धांजलि दी गई और कोरोना वारियर्स के जज्बे को सलाम भी किया गया। चौपाल प्रभारी मंजू श्रीवास्तव ने सभी सहभागियों के प्रति आभार प्रकट किया।


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