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वैदिक घड़ी का रहस्य : 24 घंटे का नहीं 30 मुहूर्त के दिन और रात

लखनऊ (शम्भू शरण वर्मा)। भारतीय कालगणना का मुख्य आधार सूर्य पर आधारित है। जब पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करती है तब एक वर्ष होता है। जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूर्ण करती है तब एक दिन और एक रात होती है। इसी आधार पर हमारे वैदिक ऋषियों ने वेदों में 5 हजार वर्ष पूर्व इस बात का स्पष्ट, वैज्ञानिक और प्रामाणिक कालगणना के सूत्र को प्रतिपादित किया है। वेदाचार्यों ने सूर्य को ही आधार बनाकर कालगणना को प्रसारित किया। आज आधुनिकता और विदेशी प्रभाव ने हमें जहां अपनी संस्कृति से दूर किया है वहीं प्रामाणिक ज्ञान को भी हम भूल गए हैं। इसी कालगणना या आम भाषा में कहें तो समय देखने की जो पद्दति आज प्रचलित है वह हमारी सभ्यता में नहीं है, बल्कि मिस्र की सभ्यता से प्रयोग में लाई गई है। यह कहना है वैदिक घंटीयंत्रम के आविष्कारक लखनऊ निवासी 29 वर्षीय आरोह श्रीवास्तव का, जो लखनऊ से कन्याकुमारी तक की साइकिल यात्रा कर लोगों को जागरूक कर रहें है। 

आरोह श्रीवास्तव के मुताबिक आज समय देखने के लिए हम जिस घड़ी का प्रयोग करते हैं वह केवल मैकेनिजम का कमाल है और ब्रिटिश लोगों ने इसे प्रचलित किया। जिसके अनुसार रात 12 बजे समय बदलने से दिन भी बदल गया और दिन बदला तो सुबह हो गई, पर व्यवहारिक रूप से तो रात ही होती है। दिन तो तब होगा जब सूर्य पृथ्वी पर अपनी किरणें फैलाएगा। उन्होंने बताया कि ऋग्वेद में पहले से ही कालगणना है और उसके मुताबिक दिन 24 घंटे में नहीं बल्कि 30 मुहूर्त में विभाजित है। इस मुहूर्त गणना से ही यह पता चल सकता है कि सूर्योदय शून्य समय पर होता है और जिस वक्त सूर्योदय होता है उस वक्त धरती की स्थिति क्या रहती है। इसी बात को आरोह ने वैदिक घड़ी का शक्ल देने का निर्णय किया और उसके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए साइकिल से भारत की यात्रा करने के लिए निकल पड़े।

उन्होंने बताया कि इस वैदिक घंटियंत्रम में सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक समय को तीस भागों में वेदों के अनुसार विभाजित किया गया है। जिस प्रकार आज समय जानने के लिए घंटे-मिनट-सेकंड का प्रयोग होता है उसी प्रकार वैदिक घंटीयंत्रम में मुहूर्त-काल-कास्था का प्रयोग होता है। प्रत्येक दिन 30 मुहूर्त, एक मुहूर्त में तीस काल और एक काल में 30 कास्था होते हैं। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार प्रत्येक दिन में 24 घंटे, एक घंटे में 60 मिनट और एक मिनट में 60 सेकंड होते हैं। आरोह बताते हैं कि उनकी वैदिक घड़ी में एक मुहूर्त बराबर वर्तमान घड़ी के अनुसार एक घंटे में 48 मिनट, एक मिनट में 96 सेकंड और एक सेकंड में 1.6 कास्था का होता है।

मर्चेंट नेवी में दो साल तक बतौर ट्रेनिंग ऑफिसर काम कर चुके आरोह ने यह नौकरी इसलिए छोड़ी ताकि वे वैदिक घड़ी की कल्पना को मूर्तरूप दे सकें। आरोह बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान वह ग्रीनविच म्यूजियम गए थे और वहां उन्होंने समय की अवधारणा से संबंधित तथ्य देखे। इस पर उन्हें लगा कि यह सिक्के का एक पक्ष है जो कि किसी शोधकर्ता ने पाया और वर्णन किया। मर्चेंट नेवी में जहाज पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते वक्त भी ऐसा ही अनुभव हुआ तब यह तय किया कि उन्हें वैदिक घड़ी के कंसेप्ट पर काम करना है अौर नौकरी छोड़ तीन साल तक शोध किया। इसके बाद इंटरनेट पर तो उन्होंने यह घड़ी बना ली लेकिन अब इस घड़ी को घरों में लगने वाली घड़ी की शक्ल दे रहे है। असल में यह काम इसलिए मुश्किल है क्योंकि यह मैकेनिकल नहीं बल्कि डिजिटल काम है। यह घड़ी जीपीएस सिस्टम, सैटेलाइट और इंटरनेट की मदद से बन सकती है क्योंकिे इसका संबंध सूर्योदय व सूर्यास्त से है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में लगाएंगे पहला वैदिक घंटीयंत्रम

आरोह श्रीवास्तव ने बताया कि उनका लक्ष्य है कि भारतीय नववर्ष के मौके पर अप्रैल माह में वैदिक घड़ी लांच कर देंगे। उन्होंने बताया कि सबसे पहले सभी 12 ज्योतिर्लिंगों पर वैदिक घंटियंत्रम लगाई जाएगी और पहली घड़ी वह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन में लगाएंगे।

करना है 12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन

आरोह कहते हैं कि चूंकि शिव को समय का प्रतीक माना जाता है इसलिए उन्होंने 12 ज्योर्तिलिंग की यात्रा साइकिल से करने का निर्णय लिया। आरोह ने बताया कि अभी तक वे 10 ज्योतिर्लिंगों और 2 धामों के दर्शन कर चुके हैं और जल्द ही बद्रीनाथ व केदारनाथ के दर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि साइकिल से यात्रा का उद्देश्य यही है कि वह अधिक से अधिक लोगों से मिलकर उन्हें इसके बारे में बता सकें और प्रतिक्रिया ले सकें।

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