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सहकार और सहकारिता पर आधारित थी ग्राम स्वराज की कल्पना

लख़नऊ। "गांधियन अर्थशास्त्र विश्व का सर्वश्रेष्ठ दर्शन" विषयक शुक्रवारीय गोष्ठी गांधी स्वाध्याय के तत्वावधान में सम्पन्न हुई। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में आशुतोष निगम (सेवानिवृत्त अधिकारी भारतीय रिजर्व बैंक), विनोद शंकर चौबे (आईएएस सेवानिवृत्त), केडी सिंह (सेवानिवृत्त प्रभागीय वन अधिकारी एवं सेक्रेटरी, सोसायटी आफ रिटायर्ड फॉरेस्ट ऑफीसर, उत्तर प्रदेश) एवं अर्जुन प्रकाश सिंह (एडवोकेट हाईकोर्ट) ने अपने विचार प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने कहा कि गांधी का आर्थिक दर्शन ग्राम स्वराज, स्वदेशी व सर्वोदय पर मुख्य रूप से केंद्रित था जो गांव को विकास की इकाई मानता है। जहां समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय रूप से हो और परस्पर आर्थिक विकास के साथ-साथ समरसता भी कायम रहे। भारत सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लघु, मध्यम एवं सूक्ष्म उद्योग (एमएसएमई) की योजना गांधियन विचार के आर्थिक मॉडल के अनुरूप लगता है। गांधी की ग्राम स्वराज की कल्पना सहकार और सहकारिता पर आधारित थी किंतु हमने मात्र शब्द को पकड़ा, उसे लेटर एवं स्पिरिट नही ले पाए। गांधियन अर्थशास्त्र वर्तमान भोग वादी व जीडीपी आधारित विकास के मॉडल को सर्वथा नकारता है क्योंकि ये केंद्रीकृत, लोभ, शोषण से ओतप्रोत एक यंत्रीकृत प्रणाली है। जिसमे अधिक से अधिक उत्पादन, असमान वितरण व मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति निहित है। यह न तो समस्त मानवमात्र का कल्याणकारक है न ही मानवेतर जगत के लिए हितकारी।परिणाम सभी के समक्ष है। ज्वलंत उदाहरण है कि विश्व की कुल 7.88 अरब आबादी में 81.1 करोड़ (9.9%) लोग आज भी भुखमरी के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि भारत में 51.4% महिलाएं जो प्रजनन आयु के अंतर्गत आती हैं (15- 49 वर्ष) एनीमिया की शिकार है जो वर्तमान अर्थव्यवस्था के मॉडल की असफलता का द्योतक है।

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