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टिकट कटवाने वालों की अब खुद पर बन आयी तो अपने देख रहे सपने

लखनऊ (शम्भू शरण वर्मा)। एक कहावत है "बहती गंगा में हाथ धोना" विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय नेता इस कहावत को चरितार्थ करने में जुटे हैैं। हाल यह है कि एक ओर मौजूदा पार्षद अपनी सीट बचाने की कवायद में जुटे हैं तो वहीं दूसरी ओर दावेदार उनका टिकट कटवाकर खुद पार्षद बनने के सपने देख रहे हैं। वो पार्षद ज्यादा परेशान दिख रहे हैं जिन्होंने अपने ही दल के विधायक का टिकट कटवाने के लिए हरसंभव कोशिश की लेकिन असफल रहे और पार्टी ने सीटिंग विधायकों पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया।

राजनीतिक दलों के इस फैसले से विरोध कर रहे पार्षदों की मुसीबत बढ़ गई हैं। हालांकि शीर्ष नेतृत्व के मान मनौवल के बाद विरोधी पार्षद पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लेकिन उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि आगामी नगर निगम चुनाव में उनकी पार्षदी का टिकट न कट जाए, क्योंकि टिकट बंटवारे में क्षेत्रीय विधायक की भूमिका भी होती है। वहीं उन क्षेत्रीय नेताओं को मौका मिल गया है जो पार्षद बनने के सपने देख रहे हैं और कई बार दावेदारी भी कर चुके थे लेकिन अभी तक उन्हें मौका नहीं मिल पाया था। ऐसे में अब वे लोग भी इस विरोध का फायदा उठा रहे हैं और अपने क्षेत्र के साथ ही शीर्ष नेतृत्व के सामने माहौल बनाने में जुटे हैं। इनमें अधिकांश वो क्षेत्रीय नेता भी शामिल हैं जो काफी अरसे से निष्क्रिय थे। इनके अचानक सक्रिय होने से समर्पित कार्यकर्ताओं व नेताओं की मुसीबतें भी बढ़ गई हैं। 

इन दिनों विधानसभा चुनाव प्रचार चरम पर है और अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिये प्रत्याशी पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। वहीं विधानसभा चुनाव प्रचार के बहाने पार्षद बनने के सपने देख रहे दावेदार भी अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटे हुये है। गौरतलब है कि चन्द माह बाद प्रदेश में नगर निगम के चुनाव भी होने है और ऐसे में पार्षदी की तैयारी कर रहे क्षेत्रीय नेताओं को जनता के बीच पैठ बनाने के लिये विधानसभा चुनाव प्रचार सबसे आसान तरीका लग रहा है। हर दावेदार अपनी ताकत दिखाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ रहे है और बैठकों व जनसंपर्क के दौरान वह प्रत्याशी को अपने उन करीबियों से मिलवाने की पूरी कोशिश करते है जो प्रत्याशी के सामने उनकी वाहवाही करे। हालत यह है कि इस दौरान दावेदार अपना वर्चस्व दिखाने के लिये हर तरह के हथकण्डे अपना रहे है। वहीं यदि किसी दावेदार ने प्रत्याशी के समर्थन में सभा आयोजित की तो दूसरे दावेदार न सिर्फ उसका विरोध कर रहे है बल्कि उस कार्यक्रम में जाने से भी गुरेज कर रहे हैं। ऐसे में प्रचार अभियान में एक ही वार्ड के कई दावेदारों के एक साथ चलने से उनमें कहासुनी भी लाजमी है। यही नहीं हर दावेदार एक दूसरे को कमजोर साबित करने का भी पूरा प्रयास करने से नहीं चूकते है।दावेदारों की इन हरकतों से अपनी सीट बचाने की कवायद में लगे सीटिंग पार्षदों की मुसीबते भी बढ़ गई हैं।


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