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वैवाहिक नकटा गीतों से सजी लोक चौपाल में लुप्तप्राय पारंपरिक गीतों पर हुई चर्चा

लुप्त होती विरासत, समयाभाव में सिमट रही रस्में 

पारंपरिक विरासत का मंगल भाव बचायें : डा. विद्याविन्दु सिंह

लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल के दौरान सिमट रही वैवाहिक रस्में और लुप्तप्राय पारंपरिक गीतों पर चर्चा हुई। आनलाइन हुई चौपाल की अध्यक्षता संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने और संचालन संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने किया। चौपाल को सम्बोधित करते हुए पद्मश्री डॉ. विद्याविन्दु सिंह ने कहा कि आज पूरे विश्व को धरोहर के संरक्षण की चिंता हो रही है। सभी अनुभव कर रहे हैं कि पारंपरिक विरासत का लोकमंगल भाव ही तमाम समस्याओं का निराकरण कर सकता है। आज रस्में सिमट रही हैं। शादी विवाह की रस्में कई कई दिन तक चलती थी पर आज समयाभाव के कारण इन रस्मों के प्रति लगाव कम होते जा रहे हैं। इनके पीछे जो कुटुंब भाव था, जीव-जंतु चिरई-चिरंगुल पेड़ पौधों से लेकर मनुष्य ही नहीं देवी-देवताओं के बीच बसे पसरे आत्मीयता बोध को जगाने का परम उद्देश्य था।
उन्होंने कहा कि संस्कारों से जुड़े पारंपरिक गीत और उनकी धुनों के प्रति राग बोध या रुचि समाप्त होने लगी और हम टूटते गए। पर आज फिर से यह राग बोध और रुचि जगने लगी है क्योंकि उसका महत्व समझ में आने लगा है। यह अनुभव किया जा रहा है कि बड़े-बड़े अहाते और बड़े-बड़े आंगन संस्कारों की पाठशाला थे जिनमें अनायास बच्चे संस्कृति और सभ्यता का पाठ पढ़ते थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह अहाते द्वार आंगन छोटे होते गए उसी प्रकार हमारे मन भी संकुचित होते गए। विभाजन की दीवारों ने आत्मीयता की आंच और आवाजाही समाप्त कर दी तो फिर से इन परिवारों को जोड़ने के लिए दीवारों को हटाने की जरूरत है, क्योंकि व्यक्ति अकेला व्यक्ति रह गया है जो भीतर से टूटा हुआ खंडित व्यक्तित्व लेकर जी रहा है। उन्होंने कहा कि हम इन दीवारों को भेदकर अस्मिता के साथ ही आत्मीयता के सपनों को लेकर आगे बढ़ें और वसुधैव कुटुंबकम का जो भारतीय संस्कृति का संकल्प था उससे जुड़ें तभी विश्व का मंगल होगा, तभी मानवता बची रहेगी।

चौपाल में नकटा गीतों की प्रस्तुतियाँ भी हुईं। लोक गायिका इंद्रा श्रीवास्तव ने अरे अरे काली कोयलिया, भारती श्रीवास्तव ने बार बार ननदी दरवजे पर जाये, पूनम सिंह नेगी ने गोल टोपी लगावें हमार बुढ़ऊ, सुषमा प्रकाश ने मैं कालन से ब्याही रे ननदिया, सौरभ कमल ने सैंया तोरी चलनिया बिगरी, सुनीता पाण्डेय ने जी का जंजाल मुआ बाजरा लाया, सरिता अग्रवाल ने कल धारे से आई जइयो कोरे बालमा, पल्लवी निगम ने हमसे भरावे गगरिया, डा. इंदु रायजादे ने जमुना जल बरसे, डा. सुरभि सिंह ने हरियाली बन्नी लाडली, शारदा पाण्डेय ने मोरी छलके न गगरिया, इंदू सारस्वत ने हमसे बलम की ऐसी बिगरी, रुपाली रंजन श्रीवास्तव ने सोने की लड़ियों पर हीरे जड़े, अलका चतुर्वेदी ने हमरे बलम ने मेंहदी बोई, रीता पांडेय ने मोरे घूमेला घंघरिया उड़ेला अंचरा, शकुन्तला श्रीवास्तव ने हो राजा बिन्दी गिरी है हमरी, सुमति मिश्रा ने भरी दोपहरी मैं ना जाऊँगी, सुनीता पांडेय ने हिसाब मेरा लेते जाना जी, अर्पणा सिंह ने सासु पनिया कैसे जाऊँ सुनाया। मीना पांडेय, शिखा श्रीवास्तव, प्रतिमा श्रीवास्तव, रेखा मिश्रा आदि भी चौपाल में सम्मिलित हुए।

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