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नाटक 'मुखौटे' ने दिया संदेश, गलत काम का होता है गलत अंजाम

लखनऊ। रंगमंच के क्षेत्र में अग्रणी नाट्य संस्था आकांक्षा थिएटर आर्ट्स की ओर से शुक्रवार को बाल्मीकि प्रेक्षागृह गोमती नगर में विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित एवं अशोक लाल द्वारा निर्देशित नाटक मुखौटे का मंचन किया गया। नारी के सम्मान पर बल देते नाटक मुखौटे ने जहां एक ओर पुरुष के दोहरे व्यक्तित्व और चरित्र को उजागर कर उसकी कलुसित मानसिकता पर करारा प्रहार किया। वहीं दूसरी ओर मदद की आंड़ में दूसरे की भावनाओं से न खेलने की सलाह देते हुए बताया कि गलत काम का अंजाम हमेशा गलत और कष्टकारी होता है।

सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक मुखौटे के कथानुसार मंगतराम की अभी अभी शादी हुई है और वह अपनी पत्नी जानकी को लेकर शहर आ जाता है। शहर में मंगत के जानने वाले मेघ साहब है, जो एक साहित्यिक संस्थान में सचिव के पद पर कार्यरत हैं। वह मंगत के कहने पर उसके घर चाय पर आते हैं और मंगत की पत्नी पर सम्मोहित हो जाते हैं। सम्मोहन के कारण वह मंगत को अपने कार्यालय में एक नौकरी प्रदान कर देते हैं। इधर मेघ साहब, मंगत की पत्नी को भी अपने घर में खाना बनाने के लिए रख लेते हैं। इसी दौरान मेघ साहब और जानकी में अवैध संबंध पनप जाते हैं। जिसको लेकर चारों तरफ चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है। कुछ समय पश्चात मेघ साहब सेवानिवृत्त होने लगते हैं तभी इस बात की भनक मंगत को लगती हैं और वह उससे कहता है कि वह मेरे लड़के किशोर को नौकरी पर रख ले। इस बात को सुनकर मेघ साहब टाल जाते हैं।

समय बीता और उस कार्यालय में दूसरे सचिव गर्ग साहब की नियुक्ति हो जाती है। मंगत उनसे भी अपने लड़के किशोर को नौकरी पर रखने के लिए विनती करता है। लेकिन गर्ग साहब मंगतराम की बेटी कनुप्रिया (जोकि कॉन्वेंट एजुकेटेड होती है) को अपनी सेक्रेटरी बनाना चाहते है। इस बात के लिए गर्ग मंगत पर दबाव बनाता है। इस बात की भनक जब कनुप्रिया को होती है तो वह अपने पिता से गर्ग साहब के यहां नौकरी करने से मना कर देती है क्योंकि गर्ग उसके ऊपर गलत निगाह रखता है।

एक दिन मंगतराम का लड़का किशोर किसी से मारपीट करके अपने घर पहुंचता है, उसकी यह दशा देखकर उसका पिता उससे पूछता है की तुमने मारपीट क्योंकि, जिस पर वह कहता है कि लोग उसकी मां और बहन के बारे में गलत बातें करते हैं। इस बात को जानने के बाद मंगतराम अपनी बेटी से गर्ग के यहां नौकरी करने के लिए कहता है, तभी कनुप्रिया अपनी मां और पिता के सामने कहती है कि मेघ साहब मेरे साथ सोना चाहते हैं। इस बात को सुनकर उसकी मां, मेघ के पास जाती है ,जहां पर वह देखती है की मेघ रो-रो कर कह रहा है की मेरी पत्नी सुधा अपने लड़के को लेकर तलाक देकर कहीं चली गई है और उसका खुद का लड़का किसी प्रोफेसर का लड़का है। जिस पर जानकी कहती है की जिस कनुप्रिया के साथ आप यह हरकत करना चाहते हैं, वास्तव में वह आपकी ही बेटी है। इस बात को मंगत का बेटा किशोर चुपके से सुन लेता है और मेघ साहब व जानकी को मार देता है। इस बात की भनक जब मंगत और कनुप्रिया को होती है तो दोनों आकर वहां पर विलाप करने लगते हैं और इसी दरमियान वहां पर पुलिस आ जाती है और किशोर एवं मेघ को गिरफ्तार करके ले जाती है, यहीं पर नाटक का अंत हो जाता है।

सशक्त कथानक और उत्कृष्ट संवाद अदायगी से परिपूर्ण नाटक मुखौटे में अशोक लाल, श्रद्धा बोस, मोहित यादव, ऋषभ तिवारी, आनंद प्रकाश शर्मा, अचला बोस, सौरव सिंह, विजय वीर सहाय, दीपक दयाल, संदीप कुमार, आदर्श तिवारी, सचिन कुमार साह सहित अन्य कलाकारों ने अपने दमदार अभिनय से रंगप्रेमी दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा। नाट्य नेपथ्य में सेट डिजाइनिंग धर्मेंद्र सिंह गौर, सचिन सिंह चौहान, अरुण कुमार, वस्त्र विन्यास अर्चना सिंह, सपना सिंह व पूजा श्रीवास्तव और संगीत निर्देशन में दीपिका बोस का योगदान महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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