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बाल निकुंज : दादी-नानी की कहानी सुन झूम उठे बच्चे, लिया ये संकल्प

अवसर के रूप में आते हैं भगवान

लोक संस्कृति शोध संस्थान का आयोजन, स्टोरीमैन जीतेश ने सुनाई कहानी

लखनऊ। जब स्टोरीमैन जीतेश श्रीवास्तव ने बच्चों के अंदाज में कहानी सुनाना शुरू किया तो स्टूडेंट्स खुशी से झूम उठे और खूब तालियां बजाईं। मौका था बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के उद्देश्य से लोक संस्कृति शोध संस्थान की श्रृंखला दादी-नानी की कहानी : जीतेश की ज़ुबानी कार्यक्रम  का। बुधवार को बाल निकुंज इंग्लिश स्कूल पलटन छावनी शाखा में आयोजित कार्यक्रम में स्टोरीमैन जीतेश श्रीवास्तव ने भगवान बचायेगा कहानी सुनाई। छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से बच्चों में स्वयं की क्षमता को पहचानने, अवसर का सदुपयोग करने जैसे प्रेरणात्मक सन्देश दिये गये। कहानी सुनकर बच्चों ने संकल्प लिया कि वह गुरुजनों, माता पिता सहित सभी की बताई बातों का पूरा पालन करेंगे।

कार्यक्रम की शुरुआत में बच्चों को टंग ट्विस्टर के माध्यम से उच्चारण अभ्यास कराया गया। बाल निकुंज स्कूल्स एंड कॉलेजेज के प्रबन्ध निदेशक एचएन जायसवाल ने बच्चों के मानसिक विकास में कहानी की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए आयोजन की सराहना की। विद्यालय की प्रधानाचार्या रश्मि शुक्ला ने कथा प्रस्तोता स्टोरीमैन जीतेश श्रीवास्तव, लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी, संरक्षक आभा शुक्ला, भावना शुक्ला, राजनारायण वर्मा के साथ ही संगीता खरे, धनंजय शुक्ला, शम्भू शरण वर्मा एवं डॉ. एस.के. गोपाल को सम्मानित किया। कथा के पहले सत्र में प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक और द्वितीय सत्र में माध्यमिक स्तर के बच्चे सम्मिलित हुए। आयोजन में विद्यालय के बच्चों के साथ ही उप प्रधानाचार्य शैलेन्द्र सिंह, अध्यापकगण अरविन्द दीक्षित, दीपा जोशी, आंचल यादव, दिनेश तिवारी, अभिषेक सिंह, नीति सिन्हा समेत अन्य मौजूद रहे।
स्टोरीमैन जीतेश श्रीवास्तव ने कहानी की शुरुआत एक गांव के मंदिर पर आये पंडित जी से की जिन्हें यह विश्वास था कि उन्हें भगवान बचायेंगे। संकट काल में भगवान ने अवसर के रूप में कई बार उपस्थित होकर पंडित जी की मदद करनी चाही किन्तु वे मदद प्राप्त नहीं कर पाये। इसी प्रकार दूसरी कहानी में नोट का उदाहरण देते हुए समझाया गया कि मुड़ा तुड़ा और गन्दा होने के बाद भी नोट की कीमत कम नहीं होती। हर व्यक्ति में अलग अलग विशेषताएं होती हैं जिन्हें पहचानने तथा औरों से तुलना करते हुए स्वयं को दुःखी न होने देने की बात मछली और चिड़िया की कहानी में सामने आई।

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