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हिम्मत और हौसलों के आगे पस्त हुई मीनू की दिव्यांगता, आवाज सुन आप भी हो जाएंगे कायल

अपनी सुरीली आवाज से पहचान बना रही दिव्यांग मीनू पाण्डेय

लखनऊ (शम्भू शरण वर्मा)। समाज व देश के लिए दिल में कुछ कर गुजरने का हौसला हो और लोगों का साथ हो तो मंजिल पाने में दिव्यांगता आड़े नहीं आती है। यह साबित कर दिखाया है एक वर्ष की उम्र से पोलियो का शिकार 28 वर्षीय मीनू पाण्डेय ने। जिसने कभी भी अपनी जिन्दगी पर दिव्यांगता को हावी होने नहीं दिया। मीनू दिव्यांग है, दाहिना पैर पोलियो ग्रसित होने से चलने में दिक्कत होती है, लेकिन उसके हौसले बुलंद हैं। वह बड़ा सिंगर बनना चाहती है, गायकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करना चाहती है, उसकी सुरीली आवाज के सभी कायल है। जब वह पारंपरिक लोकगीतों व गानों से अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरती है तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है। 
अभी भी मीनू की राह में कुछ बाधाएं है लेकिन वह अपनी दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दे रही है। उसने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि अपने हौसलों को पंख देगी और कुछ बनकर दिखायेगी। दिव्यांग मीनू पाण्डेय के दृढ़ संकल्प को देख उसके इस हौसले को उड़ान भरने में परिजनों के साथ ही रिश्तेदार व मित्र भी पूरा सहयोग कर रहे हैं। शायराना अंदाज में मीनू कहती हैं "ना थके अभी पैर, ना अभी हिम्मत हारी है, हौसला है जिंदगी में कुछ कर दिखाने का, इसलिए सफर अभी जारी है।"

बीते करीब डेढ़ दशक से लखनऊ में रह रही मूलरूप से ग्राम सेमरी, परसपुर गोंडा निवासी मीनू पाण्डेय के पिता राजकुमार पाण्डेय किसान हैं और मां उषा पाण्डेय गृहणी है। मीनू की बड़ी बहन पिंकी पाण्डेय, बड़े भाई धर्मेंद्र कुमार पांडेय, जितेंद्र कुमार पांडेय और छोटा भाई अनिल कुमार पांडेय है। मीनू बताती है कि उन्हें परिवार का हमेशा सहयोग मिलता है। मीनू कहती है कि "दिव्यांगता की सीमाओं में बंधे रहना हमें मंजूर नहीं, मंजिल तो हम पा लेंगे, मंजिल हमसे दूर नहीं।", "जरा खुद को बदल, जमाना तेरे साथ चलने को बेताब होगा, तेरे आसपास चमक सोने की होगी और तू खुद आफताब होगा।"
बचपन से था संगीत का शौक, मां से मिली प्रेरणा

मीनू बताती है कि उन्हें बचपन से ही संगीत का शौक था। उनकी मां उषा पाण्डेय अक्सर घर में पारंपरिक लोकगीत गाती थी। जिसे वह बचपन में ध्यानपूर्वक सुनती रहती थी और उसे गाने का प्रयास करती थी। मां से प्रेरित होकर ही मीनू ने संगीत के क्षेत्र में कदम रखा, जिसमें मां के साथ ही पूरे परिवार ने सहयोग किया। वर्ष 2008 से लखनऊ में रह रही मीनू पाण्डेय ने पढ़ाई के साथ ही संगीत का भी कोर्स किया। मीनू बताती हैं कि परिवार में कई बार आर्थिक बाधाएं भी आईं लेकिन माता पिता व बड़े भाइयों ने उसकी पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आने दी। वर्ष-2015 में मीनू ने भातखण्डे संगीत महाविद्यालय से संगीत में एमए किया। वह टैलेंट हंट कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर चुकी है और फाइनल तक भी पहुंची थी। लखनऊ दूरदर्शन, लखनऊ महोत्सव सहित कई सांस्कृतिक मंचों पर भी अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेर चुकी है। 

मीनू पाण्डेय ने कभी भी अपनी जिन्दगी पर दिव्यांगता को हावी नहीं होने दिया। विषम परिस्थितियों में भी मीनू ने पढ़ाई के साथ संगीत को अपनी जिन्दगी में शामिल कर संघर्ष किया, जिसका परिणाम सामने भी आ रहा है। करीब 9 वर्ष पूर्व मीनू की मुलाकात जानकीपुरम निवासी नीलाक्षी लोक कल्याण समिति के रवि वर्मा व नीलम वर्मा से हुई। जिसके बाद से मीनू संस्था से जुड़े गरीब बच्चों को संगीत की निःशुल्क शिक्षा दे रही है। वर्तमान में भी वह लोकसंस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल सहित अन्य आयोजनों में पारंपरिक लोकगीतों को सुनाकर अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेर रही है।

पहली बार मिला था दस रुपये का पुरस्कार

मीनू बताती हैं कि वर्ष 2001 में विद्यालय में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में उन्होंने देशभक्ति गीत "झंडा तिरंगा मेरी शान है, ये भारत की पहचान है..." सुनाया था। जिसपर उन्हें दस रुपये का नगद पुरस्कार मिला था। यह पहला मौका था जब मीनू को उसकी प्रतिभा पर इनाम मिला हो। उस उक्त वह कक्षा तीन की छात्रा थी और सभी ने उनके गायन की तारीफ की थी।

बॉलीवुड में जाने की तमन्ना

मीनू की तमन्ना बॉलीवुड में जाने की है। लता मंगेशकर, मो. रफी उसके पसंदीदा सिंगर हैं। मीनू कहती हैं कि लोकसंस्कृति व पारंपरिक लोकसंगीत को बनाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है इसलिए वह लोकगीतों पर ज्यादा ध्यान देती है। 

अपने परिवार के साथ मीनू पाण्डेय
एक वर्ष की उम्र में गंभीर बीमारी से हुई पोलियो का शिकार, आई दिव्यांगता
मीनू की मां उषा पाण्डेय बताती हैं कि जब उनकी बेटी एक वर्ष की थी तब बहुत तेज बुखार आया, जिससे पूरा बदन अग्नि के समान तप रहा था। उस बुखार का असर बहुत ही खराब हुआ क्योंकि इस बुखार की वजह पूरे शरीर में दिव्यांगता का आ गई थी। हालत यह हो गई कि मीनू गर्दन भी नही उठा पा रही थी। यह देख पूरा परिवार डर गया। आनन फानन में चिकित्सक को दिखाया गया, काफी दिन तक इलाज चला। मां बताती है कि डॉक्टर इतनी ज्यादा दवा देते थे कि प्रतिदिन आधे से ज्यादा समय तो मीनू को दवा पिलाने में ही चला जाता था। कई बार तो ऐसा लगा कि शायद अब मीनू की जान नहीं बचेगी लेकिन माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी। कई डाक्टर बदला और जो जहाँ बताता दिखाने चले जाते थे काफी दिन तक ऐसे इलाज चलता रहा, थोडा-2 आराम मिलता था, बाकी वैसे स्थिति बनी रहती थी। इस बीच रिश्तेदारों ने एक चिकित्सक के बारे में बताया। जब मीनू को लेकर उस चिकित्सक के पास पहुंचे तो जांच के बाद पता चला कि दाहिना पैर पोलियो ग्रसित है। काफी इलाज के बाद शरीर के सभी अंग तो ठीक हो गए लेकिन दाहिने पैर में दिव्यांगता आ गई। बावजूद उसके न मीनू ने हिम्मत हारी और न ही उसके परिजनों ने। मीनू बताती है कि संगीत में रुचि देख उसके माता पिता व भाई बहन सहित परिवार के सभी सदस्यों ने उसका साथ दिया। उसका संघर्ष लगातार जारी है और वह राष्ट्रीय स्तर पर सिंगर बनकर अपने परिवार व अपना सपना पूरा करना चाहती है। मीनू के बुलंद हौसलों ने यह साबित कर दिया कि "मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है।"

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