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उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से जुड़ी बड़ी खबर, अब ओबीसी की एक भी सीट नहीं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का अहम फैसला आ गया है। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है। 



कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि बिना ओबीसी आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराए जाएं। हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक ओबीसी आरक्षण नहीं होगा, सरकार बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव करवाए। अदालत का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्‍ट ना हो तब तक आरक्षण नहीं किया जाए। हाईकोर्ट ने 2017 के ओबीसी रैपिड सर्वे को नकार दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने मंगलवार को 70 पेजों का फैसला सुनाया। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है। ओबीसी के लिए आरक्षित अब सभी सीटें जनरल मानी जाएंगी। हाई कोर्ट ने तत्काल निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया है यानी अब यूपी में नगर निकाय चुनाव अधिसूचना जारी होने का रास्ता साफ हो गया है।

बता दें कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव के ओबीसी आरक्षण के मामले की सुनवाई 24 दिसंबर शनिवार को पूरी कर ली थी। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया था। कोर्ट ने फैसला सुनाने के लिए 27 दिसम्बर की तारीख मुकर्रर की थी।

यूपी सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही और मुख्य स्थाई अधिवक्ता अभिनव नारायन त्रिवेदी ने सरकार का पक्ष रखा था। बहस के दौरान याचियों की ओर से दलील दी गई कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। पहले मामले की सुनवाई के समय राज्य सरकार का कहना था कि मांगे गए सारे जवाब प्रति शपथपत्र में दाखिल कर दिए गए हैं। इस पर याचियों के वकीलों ने आपत्ति करते हुए सरकार से विस्तृत जवाब मांगे जाने की गुजारिश की‚ जिसे कोर्ट ने नहीं माना। राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। हाईकोर्ट में आरक्षण को लेकर 65 आपत्तियां दाखिल की गई थी । हाईकोर्ट ने सभी मामलों को सुनवाई पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं के द्वारा ओबीसी आरक्षण से लेकर जनरल आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी। सरकार के वकील की तरफ से 2017 के फार्मूले पर आरक्षण लागू किए जाने का दावा किया गया। जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त सवाल करते हुए पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है तो उसका पालन क्यों नहीं किया आरक्षण को लेकर डेडिकेशन कमीशन बनाया जाए। निकाय चुनाव में रिजर्वेशन को लेकर अंतिम दिन सुनवाई में सबसे पहले याचिकाकर्ता की वकील एलपी मिश्रा ने अपना पक्ष रखा था। वकील ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण जो किया गया है, वो राजनीतिक रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है। एक डेडिकेशन कमीशन बनाया जाए जो आरक्षण को लेकर फैसला करे। मौजूदा आरक्षण प्रणाली से पिछड़ा वर्ग के साथ न्याय नहीं हो रहा है।

डेडिकेटेड आयोग पर सरकारी वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनका रैपिड सर्वे डेडिकेटेड आयोग द्वारा किए गए ट्रिपल टेस्ट जैसा ही है।


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