लखनऊ। 18 वर्षों में सोसायटी ने समाज में उल्लेखनीय कार्य किया है। जिस तरह से हम प्रगति कर रहे हैं मनोकांक्षाओं के अनुरूप कार्य न मिलने के कारण, आसपास के माहौल में सकारात्मक ऊर्जा न होने के कारण कई बार हम अवसाद में चले जाते है और अवसाद हमें ऐसी स्थिति में पहुंचा देता है कि हम अपनी गृहलीला समाप्त करने का निर्णय ले लेते हैं। अपने जीवन को त्याग कर के अपने परिजनों को रोता बिलखता हुआ छोड़ जाते है। ऐसी परिस्थिति और मनो विचारधारा से लड़ने के लिए इस संस्था का गठन हुआ है।दी रिचमंड फेलोशिप सोसाइटी (इंडिया) लखनऊ शाखा के 18वें वार्षिक दिवस समारोह में उक्त बातें बतौर मुख्य अतिथि मौजूद डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने कहीं।
आईएमए हॉल, रिवर बैंक कॉलोनी में ‘आत्महत्या-रोकथाम‘ विषय पर आयोजित समारोह में मौजूद विशेषज्ञों के अनुसार ‘आत्महत्या‘ जीवन के नुकसान का एक ऐसा कारण है जिसकी रोकथाम की जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में हर 40 सेकंड में 1 व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है और हर साल आठ लाख लोग इस कारण अपनी जान गंवाते हैं। भारत में ही वर्ष 2021 में करीब 1,64,033 एक लाख चैसठ हजार तैतीस आत्महत्या के केस दजर् किये गये।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. एके अग्रवाल (अध्यक्ष आरएफएस और पूर्व एचओडी, मनोचिकित्सा विभाग केजीएमयू) ने अतिथियों का स्वागत किया और अध्यक्षीय भाषण दिया। संस्था की सचिव डॉ. शशि राय ने केंद्र का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। वक्ताओं ने सम्मेलन के विषय पर बात की और कारणों, चेतावनी के संकेतों, इसे कैसे रोका जा सकता है और कानूनी पहलुओं पर भी चर्चा की। उनका विचार था कि ‘आत्महत्या‘ जीवन के नुकसान का एक निवारणीय कारण है। इसे रोका या कम किया जा सकता है। कानपुर से आये मनोचिकित्सक डॉ. आलोक बाजपेयी के अनुसार, ‘आत्महत्या एक व्यवहार है, जो पर्यावरणीय कारकों की संख्या से जोड़-तोड़ का कार्य हो सकता है‘। यह देखा गया है कि आमतौर पर एक आत्महत्या करने वाला व्यक्ति असामाजिक होता है। कुछ का मानना था कि आत्महत्या को जैविक मार्करों के कारण होने वाली जैविक घटना के रूप में देखा जाना चाहिए।
कई मनोरोग कारक स्थितियां और विशिष्ट पर्यावरणीय अवक्षेपण घटनाएं जैसेः खतरा, तनाव, विफलता, चुनौती और हानि भी आत्मघाती व्यवहार में योगदान करती हैं। डा. दिव्या प्रसाद (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट) के अनुसार प्रत्येक आत्महत्या के लिए कम से कम 20 आत्महत्या के प्रयास होते हैं इसलिए आत्महत्या को रोका अथवा कम किया जा सकता है। इसलिए व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा स्मारिका का भी विमोचन किया गया। नव उदय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान की टीम ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। आलोक सक्सेना (कोषाध्यक्ष, आर.एफ.एस. लखनऊ शाखा) और डॉ. एलके माहेश्वरी (उपाध्यक्ष मनोरोगी कल्याण संस्था और पूर्व वी.सी. बिट्स पिलानी ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया। कर्नल एस.एस.यादव ने कार्यक्रम का संचालन किया।
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