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समकालीन रंगकर्म का आईना है पत्रिका ‘दर्पण-2023’

लखनऊ। संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में चल रहे दर्पण हीरक जयंती राष्ट्रीय नाट्य समारोह में विमोचित प्रो. सत्यमूर्ति और डा. उर्मिल कुमार थपलियाल को समर्पित पत्रिका ‘दर्पण-2023’ भी रंगप्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र है। वरिष्ठ कला समीक्षक राजवीर रतन के सम्पादन में निकली इस पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर पटना (बिहार) के वरिष्ठ चित्रकार पद्मश्री श्याम शर्मा का आकर्षक मोनोटाइप चित्र है। डा. निष्ठा शर्मा व सचिव दर्पण के पहले दो आलेख मास्साब के नाम से विख्यात रंगमनीषी प्रो. सत्यमूर्ति के व्यक्तित्व-कृतित्व को समर्पित सम्पादन मण्डल के राधेश्याम सोनी ने डा. थपलियाल के कृतित्व को अपने लेख में समेटने के साथ पूरी पत्रिका के लिए चित्र और डाटा उपलब्ध कराये हैं तो अनिल मेहरोत्रा ने अनेक विस्तृत लेखों के संक्षिप्तीकरण व प्रूफरीडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

पत्रिका की एक बड़ी खूबी यह है इसमें दर्पण के रंगकार्य और उपलब्धियों का दस्तावेजीकरण बहुत अच्छी तरह से हुआ है तो विभिन्न रंगविद्वानों के रंगचिंतन और अनुभव भरे लेखों में तत्कालीन और समसामयिक रंगकर्म का साक्षात्कार होता है। दशकों पहले अंतर्देशीय पत्र पर निकाले गये न्यूज लेटर के तीन अंक, छायानट के प्रो. सत्यमूर्ति अंक और 1967 की एक नाट्य स्मारिका का मुखपृष्ठ और करीने से वर्षवार छापी प्रस्तुतियों की सूची और उनके चित्र इस बात की तस्दीक करते हैं।
रंग स्मारिका से उठाया गया पद्मभूषण अमृतलाल नागर का दुर्लभ लेख रंगप्रेमियों के तत्कालीन रंगकर्म की दुसाध्य परिस्थितियों रोचक दृश्य उपस्थित करता है। लेखक, रंगकर्मी और एक्टिविस्ट राकेश का आलेख पद्मभूषण अमृतलाल नागर और पद्मश्री राज बिसारिया के रंगकर्म के सिलसिले को, दोनों की वैचारिक समझ और आपसी समन्वय के साथ तत्कालीन परिस्थितियों में रंगमंचीय मूल्यों की स्थापना करता है। कहानियों के रंगमंच के लिए विख्यात, रानावि के पूर्व निदेशक देवेन्द्रराज अंकुर ने अभिनय के शास्त्रीय और अन्य पक्षों को, समीचीन दृष्टियों से व्याख्यायित किया है। हिन्दी रंगजगत के विख्यात नाटककार और दूरदर्शन से जुड़े रहे रंगनिर्देशक सुशील कुमार सिंह का आलेख कई दशकां के समकालीन हिन्दी रंगकर्म का चित्रण प्रस्तुत करता है। दर्पण के महासचिव रंगमंच से फिल्मों में स्थापित हुए अभिनेता डा.अनिल रस्तोगी का लेख, उनके रंग अनुभवों और संस्था को गतिमान रखने के प्रयासों पर है। यही बात कुशल वरिष्ठ अभिनेता विजय वास्तव के लेख में उनके व्यक्तिगत प्रयासों और उपलब्धियों को रेखांकित करता है। शोभना जगदीश का राधेश्याम सोनी से बातचीत पर आधारित लेख दर्पण संस्था में महिला कलाकारों को मिले प्रोत्साहन औ सम्मान की भी एक बानगी है। डा.कुमकुम धर ने आलेख में नृत्य और रंगमंचीय अभिनय के रिश्तों की पड़ताल बारीकी से की है। शाखा बंद्योपाध्याय ने लेख में संस्कृति से जुड़ी पत्रिकाओं और उनके योगदान की चर्चा की है। अनुभवी लेखक और ब्रॉडकास्टर प्रतुल जोशी ने रंगमंच और रेडियो के मशहूर अभिनेता विजय बनर्जी का साक्षात्कार प्रस्तुत किया है। वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल सिन्हा के आलेख में विशेष रूप से राजधानी की समकालीन रंगमंचीय परिस्थितियों का आकलन है। समाचार वाचक नवनीत मिश्र का लेख, श्रव्य और रेडियो से जुड़े व्यावहारिक और मंचीय अभिनय का आकलन है। डा.बीसी गुप्ता का लेख संस्था की कई प्रस्तुतियों की संचित स्मृतियों को उकेरा है। रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया ने यहां रंगमंच की सीमाओं को अभिनय के विभिन्न आयामों को शब्द दिये हैं। अनिल मेहरोत्रा ने दर्पण गोरखपुर और गोपाल टण्डन ने दर्पण सीतापुर के कृतित्व को बयां किया है। संपादक राजवीर रतन के लेख में रंग पत्रकारिता के तथ्यों के साथ कुछ निजी अनुभव हैं। अपने संपादकीय में उन्होंने प्रो.सत्यमूर्ति, रंगकर्मी स्वदेश बंधु और अभिनेता अनुपम खेर से जुड़ी यादों को भी बयान किया है।

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